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वास्तुपुरुष और फैक्ट्री के बीच क्या संबंध है

वास्तु पुरुष का वर्णन बृहत् संहिता में विस्तार से दिया गया है। जिसमें बताया भी गया है। कि कैसे वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति हुई और क्योंं वास्तु आवासीय व व्यवसायिक प्रतिस्थानों में आवश्यक है।

वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा जी ने की थी। जिसको उन्होंने समाज के कल्याण के लिए ऋषि-मुनियों को प्रदान किया था। कलांतर में समय के साथ इसमें कई प्रयोग-अनुप्रयोग हुए। जिसका उल्लेख हमारे वेदों, पुराणों व ऋचाओं में मिलता है। वास्तु पुरुष की उत्पत्ति कुछ इस तरह से हुई थी।

पूर्वकाल के दौरान पृथ्वी और आकाश को एक ऐसे असुर ने आतंकित रखा रखा है। जिसका आकार कुछ विलक्ष्ण था। इस असूर की विशालता से परेशान समस्त देवताओं ने क्रुद्ध होकर उस असूर का सिर नीचा करके भूमि में गाड़ दिया और स्वयं वहां पर खड़े हो गये। जिस स्थान पर समस्त देवता खड़े रहे वह उनके आधिपत्य का क्षेत्र माना गया।

तब इस देवमय (असूर) का नाम भगवान ब्रह्मा जी ने वास्तु पुरुष रखा तथा स्थापना की कि पृथ्वी पर यह पूज्य होंगे व निर्माण तभी सफल होंगे जब वास्तु पुरुष का पूर्ण सम्मान करते हुए कार्य किया जाए। भूखण्ड के प्रत्येक भाग में वास्तु पुरुष का कोई न कोई अंग जरुर होता है। जिसे पद भी कहा जाता है। और प्रत्येक पद में वास्तुपुरुष का आस्तित्व मौजूद रहता है। वास्तुपुरुष समस्य पदों के स्वामी हैं।

अब आप समझ गये होंगे। क्यों फैक्ट्री निर्माण में वास्तु की आवश्यकता है। हर निर्माण में क्यों वास्तु पुरुष का ध्यान रखना चाहिए।

फैक्ट्री और वास्तु पुरुष के बीच का संबंध ठीक होने पर फैक्ट्री को कौन-कौन से लाभ मिलते हैं-

फैक्ट्री में कैसे लाभ होगा। इसके पीछे वास्तु का बहुत बड़ा प्रभाव होता है। क्योंकि ऐसे बहुत सारे बड़े-बड़े कारखाने है। जिनमें हजारों की संख्या में मजदूर काम करते है और कर्मचारी भी कार्यरत है। वहां पर काम भी बहुत होता है और उत्पादन भी होता है। परंतु यदि लाभ की बात की जाये । तो फैक्ट्री की जब वित्तीय आडिट होती है। तो उनको हानि का सामना करना पड़ता है। ऐसे एक नही बल्कि कई उदारण है। भारत में देखे तो इंटेक्स कंपनी इस समस्या से गुजर रही है और कई वर्षों से उसको लाभ की प्राप्त नही हो रही है।

इन सबके पीछे वास्तु भी एक बहुत बड़ा कारण होता है। और ऐसे भी उदाहरण देखने को बहुधा मिल जाते है। कि यदि फैक्ट्री का माल तैयार हो जाता है। परंतु मार्केट में जाने से पहले कोई समस्या आ जाती है। या फिर मार्केट में वह विक्रय नही होता है। व्यापार में अड़चने नही आती है और व्यापार गति से साथ चलता है।

  • फैक्ट्री या फिर व्यापारिक प्रतिष्ठान में मजदूर और कर्मचारी वर्ग स्थायित्व प्राप्त करते हैं।
  • फैक्ट्री मालिक के आदेशों का निर्वाहन हर कोई आज्ञा मान कर स्वीकार करते है और पूरी निष्ठा के साथ पालन करते हैं।
  • फैक्ट्री में माल के क्रय-विक्रय का कार्य आसान हो जाता है।
  • निर्मित माल की मार्किंग वैल्यू अच्छी होती है और सप्लाई चैन में लगाातर वृद्धि होती रहती है।
  • कच्चे माल की समस्या से कंपनी को नही जुझना पड़ता है।
  • मशीनों पूरी क्षमता के साथ कार्य करती है।
  • मशीनों में खराबी की समस्या का सामना बहुत ही कम करना पड़ता है।
  • मशीनों के रख रखाव में कम खर्च होता है।
  • फैक्ट्री को कानूनी मुकदमों का सामना नही करना पड़ता है।

वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)