वास्तु शास्त्र एक भारतीय वास्तुकला विज्ञान है और एक पारंपरिक हिंदू प्रणाली भी है जिसका कई वर्षों से पालन किया जा रहा है। इस विचारधारा को 'वास्तुकला का विज्ञान' कहा जाता है। वास्तु में हर चीज के पीछे वैज्ञानिक महत्व होता है। जब हम कोई भवन बनाते हैं, तो निश्चित रूप से प्रत्येक कमरे या क्षेत्र में कुछ ऊर्जा पैदा होती है। निर्माण के आधार पर ये ऊर्जाएं नकारात्मक या सकारात्मक हो सकती हैं।
वास्तु स्थिति और दिशा के अनुसार घर का निर्माण करते समय विशिष्ट नियम प्रदान करता है जो भवन में हर जगह सकारात्मक ऊर्जा पैदा करने में सहायता करेगा।
निवास के लिए वास्तु एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो समृद्धि की अवधारणा पर आधारित है। इसका सीधा संबंध व्यक्ति के सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि से होता है। इसलिए व्यक्ति को हमेशा वास्तु सिद्धांतों के अनुसार अपने आवास के निर्माण का विकल्प चुनना चाहिए। इसमें एक और महत्वपूर्ण चीज शामिल है, वह है पंच तत्व (पांच तत्व)।
'माँ प्रकृति' भी इन्हीं 5 मूल तत्वों से बनी है जिसमें वायु, ग्रह, जल, पृथ्वी और अग्नि की ऊर्जा समाहित है। आपके निवास के लिए प्रत्येक का अपना प्रभाव है। वास्तु सिद्धांत के अनुसार, यह आपके जीवन के सभी तथ्यों, यानी जीवन, स्वास्थ्य, सोच, शिक्षा, समृद्धि, मन की शांति और विवाह पर एक जबरदस्त प्रभाव इन सभी का असर होता है।
हमारा निवास हमारे जीवन का दर्पण है। यह स्पष्ट रूप से हमारे स्वास्थ्य, कल्याण, आनंद, दुःख, धन और समृद्धि की तरह होने की स्थिति को इंगित करता है। आज के युग में, अधिकांश लोगों के पास प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ चुकी है। उन्हें दिन के अंत में वापस बैठने, आराम करने का समय भी नहीं हैं। निवास के लिए वास्तु आपको अपने घर को स्वर्ग की तरह आराम और विश्राम के साथ संतुलित करने में मदद करता है जहाँ आप तरोताजा हो सकते हैं।
वास्तु के अनुरूप वास्तुशिल्प डिजाइन आपके घर को एक बेहतर स्थान में बदल देता है। आपका घर आपका अपना स्थान है। एक वास्तु-संगत घर न केवल आपको खुश और प्रसन्न महसूस कराता है, बल्कि यह कुछ ऐसा है जो धन, स्वास्थ्य और समृद्धि के साथ आपकी अभिव्यक्तियों को नियंत्रित करता है और आपके आगंतुकों (visitors) को प्रभावित करता है।
वास्तु अनुरूप इंटीरियर डिजाइन में संरचना के वास्तु दोषों को सुधारने की शक्ति है। एक वास्तु अनुरूप घर का डिज़ाइन न केवल आपकी विशिष्ट सौंदर्य आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि आपके उद्देश्य के साथ आपको बराबरी करने के लिए आपके घर की ऊर्जा को भी बढ़ाता है। वास्तु के अनुसार आपके बिस्तर का स्थान है, आपकी रसोई का डिज़ाइन, आपके बाथरूम में WC का स्थान, सीढ़ी, लॉकर, अध्ययन, सब कुछ आपकी समग्र बेहतरी के लिए सकारात्मक ऊर्जा देता है।
किसी फ्लैट/अपार्टमेंट या प्लॉट के निर्माण के लेआउट या डिजाइन योजना का मूल्यांकन करते समय, सबसे पहली बात जो ध्यान में रखी जानी चाहिए वह है वास्तु टिप्स या सिद्धांत। ये आपके घर को अधिक जीवंत और शांतिपूर्ण बनाने में आपकी मदद करेंगे।
आवासीय वास्तु में यदि आपका घर दक्षिणमुखी या फिर पश्चिम मुखी है तो ऐसे में आपको इस बात का ध्यान देना चाहिए, कि वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा के किस पद से द्वार करना शुभ होता है और पश्चिम दिशा में किस पद से द्वार करना शुभ होता है। परंतु यदि आपका घर का प्रवेश उत्तर/पूर्व दिशा की ओर है तो यह ही सर्वोत्तम होता है, ऐसा भी नहीं है इसके भी द्वार वास्तु के अनुरूप पद के आधार पर करना चाहिए।
आवासीय के लिए वास्तु डिजाइन करते समय मुख्य प्रवेश द्वार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वास्तु दिशानिर्देशों के अनुसार, सभी दरवाजे विशेषकर मुख्य प्रवेश द्वार अंदर की ओर खुलने चाहिए ताकि आपके घर के अंदर ऊर्जा बनी रहे। एक और बात जो ध्यान में रखनी चाहिए वह है दरवाजों के कब्जों (Door Hinges) का ख्याल रखना। उन्हें शोर-शराबे से मुक्त करने के लिए समय-समय पर ग्रीस करते रहना चाहिए।
बेडरुम आपके बहुत आवश्यक आराम के लिए मेजबान की भूमिका निभाता है। बेडरूम को वास्तु शास्त्र में सुझाए गए निर्देशों के अनुसार स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि आपके जीवन में शांति और शांति आए। वास्तु के अनुसार बेडरूम को या तो (South-West ) पश्चिम/दक्षिण पश्चिम दिशा में रखना चाहिए।
वास्तु के अनुसार लोगों को हमेशा दक्षिण दिशा की ओर सिर और उत्तर दिशा में पैर फैलाकर सोना चाहिए। इसका उद्देश्य व्यक्तियों को शांतिपूर्ण और अच्छी नींद लेना है। पूर्व दिशा में सिर करके सोना भी अच्छा होता है। क्योंकि पूर्व दिशा में ध्यान केंद्रित रहता है और यह सभी सकारात्मक ऊर्जा के लिए शक्ति का स्रोत भी है।
पूजा स्थल का निर्माण करते समय सभी देवताओं की मूर्तियों को हमेशा पूर्व दिशा में रखें ताकि पूजा करते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। वास्तु के अनुसार, सीढ़ियों के नीचे अपना पूजा स्थान / कमरा नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यह प्रतिकूल माना जाता है। पूजा घर का निर्माण बाथरुम और टॉयलेट के पास नही करना चाहिए।
तुलसी का पौधा बहुत ही शुभ माना जाता है और साथ ही हिंदू धर्म में इसका बहुत महत्व है। वास्तु के अनुसार, भारतीयों की मान्यता है कि तुलसी एक ऐसा पौधा है, जिसमें विभिन्न भक्ति कारक होते हैं। अपने घर में तुलसी के पौधे लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और साथ ही यह सकारात्मक ऊर्जा को भी बढ़ा सकता है। इस पौधे का आदर्श स्थान आपके निवास की पूर्व दिशा व ईशान (North-East) भी हो सकता है। उत्तर (North) में भी यह शुभ माना जाता है। जो आपके जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण और शांति देने वाला बनाता है। इस पौधे को सबसे महत्वपूर्ण औषधीय जड़ी बूटी के रूप में भी जाना जाता है। तुलसी अपनी उपचार शक्ति और सुगंध से पूरे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाती है। दक्षिण-पश्चिम (South-West) में तुलसी का पौधा नहीं लगाना चाहिए।
रसोई के लिए सबसे सर्वोत्तम दिशा दक्षिण-पूर्व और दक्षिण दक्षिण-पूर्व है। इसके अतिरिक्त दक्षिण (South) में या पूर्व दक्षिण-पूर्व (ESE) में भी बना सकते हैं। किचन प्लेसमेंट का मूल्यांकन या योजना बनाते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए, कि किचन का निर्माण मुख्य द्वार के सामने नहीं करना चाहिए। कभी भी घर की किचन बेडरूम, टॉयलेट और पूजा कक्ष के ऊपर और न ही इसके नीचे होना चाहिए।
वास्तु शास्त्र की सलाह है कि बाथरूम घर के किसी भी कोने में नहीं होना चाहिए। वास्तु अनुरूप घर के अनुसार बाथरूम (नहाने वाला) घर के पूर्वी हिस्से में बनाना चाहिए या शौचालय का निर्माण घर के पश्चिमी/उत्तर-पश्चिमी हिस्से में करना चाहिए। टॉयलेट को आप दक्षिण मध्य (South Central) या दक्षिण दक्षिण-पश्चिम (SSW) में भी बना सकते हैं।
वास्तु शास्त्र नया घर बनाते समय सही दिशा में कुआं (UG Tank) खोदने का सुझाव देता है। साथ ही आवास के निर्माण के लिए कुएं के पानी का उपयोग करना भी अनुकूल है। कुआँ गोल आकार में होना चाहिए और सूर्य पथ के पर्याप्त संपर्क में अर्थात धूप सीधी कुएं में पड़नी चाहिए। वास्तु नियम घर की उत्तर/पूर्व दिशा में कुआं बनाने की सलाह देते हैं। घर में कुएं के लिए पूर्व की दिशा भी अच्छी होती है। कुएं के लिए उत्तर दिशा सर्वोत्तम मानी गई है। उत्तर-पूर्व (North-East) में भी हो टैंक या कुआं बना सकते हैं। कुआं व टैंक कोने पर नहीं बनाना चाहिए। टैंक चाकोर अच्छा रहता है। तथा इसकी लंबाई व चौड़ाई हमेशा विषम होनी चाहिए , जैसे - 5*7, 7*9 इत्यादि ।
वास्तु के अनुसार, पश्चिम/दक्षिण दिशा में सीढ़ियां बनाने से आपके घर में आने वाली सभी नकारात्मक शक्तियों से आपकी रक्षा होगी परंतु घर के किसी भी कोने में सीढ़ियां ठीक नहीं होती हैं। जब सीढ़ियां बनाई जाती हैं, तो यह हमेशा पूर्व की ओर से पश्चिम में लिए उठनी चाहिए या उत्तर से शुरू होनी चाहिए और दक्षिण में चढ़नी चाहिए। घर के मध्य,ईशान कोण और उत्तर में सीढ़ियां बनाने से बचना चाहिए । सीढ़ियों में राईजर की व्यवस्था ऐसी करें कि कुल संख्या में 3 का भाग देने पर 2 शेष रहे। जैसे 2, 5,8,11,14,17,23 आदि। राईजर की संख्या 10,20,30 या शून्य से समाप्त न हो। अगर किसी कारण से 17 और 23 में सीढ़ी की सेटिंग नहीं हो तो 20 भी रख सकते हैं। SE/SW के कोने में सीढ़ियां नहीं होनी चाहिए । NW/SE के कोने में निर्माण कर सकते हैं।
वास्तु विचारधारा के अनुसार, पूर्व दिशा में तेल का दीपक रखने से सभी नकारात्मक वाइब्स नष्ट हो जाते हैं। दीपक को दक्षिण-पूर्व (SE) में जलाना चाहिए। पूर्व दिशा में भी दीपक को रख सकते है। दीपक को दक्षिण व पश्चिम दिशा में रखने से बचें। घी को दीपक भगवान के राइट (दाहिने ओर) और तेल का दीपक भगवान के लेफ्ट (बाईं) ओर रखना चाहिए।
पेड़ लगाने के लिए आदर्श स्थान दक्षिण/पश्चिम दिशा में है और उन्हें निवास के बहुत करीब लगाने से बचना चाहिए, ताकि पेड़ों की शाखाएं आपके निवास के संपर्क में न आएं। इसके अलावा, लताएं न लगाएं, क्योंकि यह आपके घर की दीवारों को नुकसान पहुंचा सकती है।
यदि आपका आवास वास्तु सिद्धांतों के अनुसार बनाया गया है, तो निवासी जीवन के सभी सुखों का आनंद लेते हैं। यदि इसे वास्तु सिद्धांतों के विरुद्ध बनाया गया है, तो यह सभी प्रकार के तनावों, और अशांति का केन्द्र बिन्दु बन जाता है।
वास्तु विद् -रविद्र दाधीच (को-फाउंडर) वास्तुआर्ट