फैक्ट्री एक वस्तु निर्माण की जगह होती है। और हर वस्तु में वास्तु समाहित है। इसलिए फैक्ट्री में वास्तु सिद्धांत का पालन करना आवश्यक है। फैक्ट्री वास्तु के नियमों का पालन करने से आर्थिक प्रगति, उत्पादन कार्य में वृद्धि तथा मजदूर वर्ग में सदैव संतोष बना रहता है। वैश्वीकरण और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के आगमन के साथ, उद्योग स्थापित करने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है। फैक्ट्री के भूमि से लेकर (फैक्ट्री आकार, फैक्ट्री के द्वार) , मशीनरी, गोदाम, कच्चा माल, अर्धनिर्मित माल, निर्मित माल, विक्रय व्यवस्था, विद्युत व्यवस्था इत्यादि को वास्तु के सिद्धांत अनुसार करने से सर्वाधिक लाभ की प्राप्ति होती है।
वर्तमान समय में अधिकांश फैक्ट्रियों का निर्माण में भारी-भरकम मशीनों के संयोजन के तैयार की जा रही है। आज के समय में ज्यादातर फैक्ट्रियां व्यवसायिक उद्धेश्य से तैयार की जा रही हैं। फैक्ट्री मालिक के साथ मैनेजमेंट टीम, तकनीशियन टीम, और टांसपोर्ट विभाग वास्तु के अनुसार होना चाहिए।
वर्तमान समय में अधिकांश फैक्ट्रियों का निर्माण में भारी-भरकम मशीनों के संयोजन के तैयार की जा रही है। आज के समय में ज्यादातर फैक्ट्रियां व्यवसायिक उद्धेश्य से तैयार की जा रही हैं। फैक्ट्री मालिक के साथ मैनेजमेंट टीम, तकनीशियन टीम, और टांसपोर्ट विभाग वास्तु के अनुसार होना चाहिए।
फैक्ट्री में पानी, बिजली और फैक्ट्री के आकार के निर्माण से संबंधित सुविधाओं की उपलब्धि को सुनिश्चित करने के अतिरिक्त निर्माण स्थल का चुनाव सबसे पहला महत्वपूर्ण कार्य होता है। जहां तक संभव हो फैक्ट्री का आकार , सड़क से उसका संबंध, ढलान और फैक्ट्री निर्माण की भूमि का स्तर या सतह वास्तु सम्मत होनी चाहिए।
जब कोई व्यक्ति या फिर व्यक्तियों का समूह (ग्रुप) अपने प्रोडक्ट या सेवाओं के लिए किसी फैक्ट्री निर्माण के बारे में विचार करता है। तो वह ऐसा स्थान में प्लाट (भूखण्ड) देखना प्रारंभ करता है। जहां पर उसे फैक्ट्री के लिए बिजली, पानी, कच्चे माल को लाने और ले जाने में सुविधाा, ट्रांसपोर्ट सिस्टम की सुविधा आदि की व्यवस्थाएं हो। अब इन सारी सुविधाओं के साथ-साथ वास्तु का भी अपना एक विशेष महत्व है। जिससे माल का उत्पादन बेहतर हो सके और व्यापार विकसित हो सके।
फैक्ट्री निर्माण करने से पूर्व वास्तु निर्माण व वास्तु सूत्रों का पालन करना अनिवार्य होता है। तभी फैक्ट्री के स्थान के पांच तत्व ठीक प्रकार से समन्वय होगे और फैक्ट्री में जिस माल का उत्पादन हो रहा है। वह ठीक प्रकार से मार्केट में पहुंच कर अपनी क्वालिटी के आधार पर उपभोक्ताओं के दिल में जगह बना सकेगा। वास्तु के नियम ठीक प्रकार से लागू हो जाने पर मालिक को फैक्ट्री के माल का मूल्य ठीक से प्राप्त होगा और वह लाभन्वित होगा।
फैक्ट्री निर्माण के बारे में वास्तुविद् रविन्द्र दाधीच जी कहते है। कि फैक्ट्री निर्माण के लिए भूखण्ड का चयन अतिआवश्यक है। बिना चयनित भूमि में फैक्ट्री स्थापित नही करनी चाहिए। फैक्ट्री भूखण्ड के आकार में रविन्द्र जी का मत है। कि वर्गाकार, आयताकार और सिंहमुखी भूखण्ड अच्छे होते है। परंतु इसके अतिरिक्त भी यदि जैसे गोलाकार, त्रिभुजाकार या अन्यकोई आकार को भूखण्ड है तो उसका निर्धारण मालिक की जन्म कुण्डली के आधार पर किया जाता है।
फैक्ट्री निर्माण के लिए पूर्वमुखी या उत्तर मुखी भूखण्ड के बारे में अधिकांश वास्तुशास्त्रियों का मत है। कि ऐसे भूखण्ड उत्तम होते है। सूर्यवेधी भूखण्ड फैक्ट्री के लिए भी अच्छे माने गये हैं। सूर्यवेधी भूखण्ड का तात्यपर्य है। कि जिस भूखण्ड की पूर्व और पश्चिम की भूजाएं लम्बाई में बड़ी हो तथा उत्तर और दक्षिण की भूजाएं छोटी (कम) हो इस प्रकार के भूखण्ड फैक्ट्री निर्माण के लिए होते है।
जब फैक्ट्री में एक कुशल वास्तुविद् चयनित भूखण्ड का मापन करके उसमे वास्तु सिद्धांतों को लागू करता है। तो वह फैक्ट्री की भूमि का स्पंदन प्रवाह, गंध, गुण , प्रथ्वी तत्व और प्रथ्वी बल के आधार पर वास्तु के अनुरुप ही फैक्ट्री की मशीनी को स्थापित करने की जगह निर्धारित करता है। एक अच्छा वास्तु शास्त्री यह भी ध्यान रखता है। कि फैक्ट्री में आन्तरिक्ष की अच्छी एनर्जी का प्रवाह सही तरीके से हो रहा है या नही , ग्लोबल एनर्जी का प्रवाह कैसा है , कहीं आपके फैक्ट्री भूखण्ड में जियोपैथि स्ट्रेस रेखा तो नही हैं और भी बहुत सारे वास्तु शास्त्र के नियम है। जिनका ध्यान रखकर एक वास्तु शास्त्री आपकेे फैक्ट्री के भूखण्ड के भ्रमण (विजिट) के दौरान लागू करता है। तभी एक फैक्ट्री अपने मालिक के लिए लाभकारी सिद्द होती है।
फैक्ट्री वास्तु के अनुसार आपकी फैक्ट्री का भूखण्ड किसी भी दिशा अर्थात पूर्व, पश्चिम , उत्तर या फिर दक्षिण में हो सकता है। फैक्ट्री के भूखण्ड की किस जगह पर क्या स्थापित किया जाये यह बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। फैक्ट्री में मशीनों को स्थापित करने की जगह का सही चयन, कच्चा माल रखने की जगह का निर्धारण, मुख्य बिल्डिंग या प्रशासनिक भवन की भूमि का निर्धारण , तैयार माल की जगह का निर्धारण, कैंटीन व पीने के पानी की जगह का चयन, स्टाफ क्वाटर का निर्धारण तथा जनरेटर और वायलर किस दिशा में उत्तम परिणाम देंगे । इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए वास्तु के सिद्धांत लागू किए जाते है। ताकि फैक्ट्री में कार्य करने वाले सभी जन स्वस्थ रहें ऊर्जावान रहें व सुरक्षित रहें तथा फैक्ट्री उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर बनी रहे।
फैक्ट्री के मुख्य द्वार के संबंध में वास्तु का मत है। कि यह किसी भी दिशा में हो सकता है। यह दिशा का अपना अलग-अलग महत्व होता है। परंतु अधिकांश वास्तुविद् इस संदर्भ में अपनी राय में सर्व प्रथम उत्तर व पूर्व के लिए फैक्ट्री के मुख्य द्वार की दिशा उत्तम बताते है। वैसे तो फैक्ट्री में की चारो दिशाओं में द्वार हो तो अतिउत्तम माना जाता है। क्योंकि यह ट्रांसपोर्ट की सुविधा के लिहाज से उचित है और वास्तु की दृष्टि से भी अच्छा माना जाता है। चोरो ओर द्वार होने से फैक्ट्री में सूर्य तथा बुध देव की आसीम कृपा बनी रहती है। जिससे व्यापार वृद्धि व धन आगमन, प्रसिद्धि और यश प्राप्त होता है। कंपनी को एक विशेष पहचान मिलती है।
वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)