भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म को लेकर हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णन मिलता है। कि रामभक्त व रामचरित मानस जैसे महाकाव्य के रचियता श्री तुलसीदास जी का जन्म श्रावण के पवित्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। इसी मान्यता के अनुसार हर वर्ष सावन महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथी को हर वर्ष तुलसीदास जयंती के रुप में मनाई जाती है। वर्ष 2022 में तुलसीदास जयंती 4 अगस्त दिन गुरुवार को मनाई जायेगी। तुलसीदास जी की कुछ प्रमुख रचनाएं - रामचरितमानस, दोहावली, गीतावली, कवितावली, कृष्ण गीतावली, रामज्ञा प्रश्नावली, हनुमान बाहुक, विनय पत्रिका, रामलला नहछू, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण, वैराग्य सन्दीपनी, कवित्त एवं कुंडलियाँ हैं ।
तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट धाम कर्वी के निकट राजापूर नामक एक छोटे से गांव में पंडित आत्माराम शुक्ल और हुलसी के पुत्र के रुप में हुआ था। तुलसीदास जी के जन्म को लेकर एक जनश्रुति है कि जब इनका जन्म हुआ था तो यह सामान्य बालको की तरह रोये नही थे और दूसरी बात यह कि जन्म के समय इनके मुख में पूरे 32 दांत थे इस कारण से कुछ लोग इनको महाकवि बाल्मीकी जी का स्वरुप मानते थे। इसके अतिरिक्त भी बहुत सारी जनश्रुति एवं लोकमान्यातएं इनके जन्म को लेकर रहीं है।
वास्तुआर्ट परिवार प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी तुलसीदास जयंती पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाएगा।
तुलसीदास जी के जन्म की कथा बहुत ही रोचक एवं प्रेरणादायक है। वैसे तो गोस्वामी दास जी का पूरा जीवन प्रेरणा से ओत-प्रोत रहा है। उन्हीं घटना चक्रों में से आज वास्तुआर्ट के सह-संस्थापक रविन्द्र दाधीज जी तुलसीदास जी के जीवन की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहते हैं। कि उस समय जैसे-जैसे पूज्यपाद गोस्वमी तुलसीदास जी की ख्याति चारो ओर फैल रही थी। तो लोगों को उनके बारे में जानने के अधिक रुची बढ़ रही थी।
यह प्रसिद्धि इनती बढ़ी की राजाओं के दरबार तक पहुंच गई। उस समय का तत्कालीन शासक बाहशाह अकबर था। जिससे दरबार में भी तुलसीदास जी के चमत्कार की चर्चाए होने लगी । यह बात अकबर को और उसके दरबारियों को नही पची। और उनसे आदेश दिया कि दरबार में बाबा तुलसीदास को पेश किया जाये। दरबार में उपस्थित दरबानों ने आदेश पाते ही उसके पालन लिए अपने सेवकों को तुलसीदास जी के पास भेज दिया और उन्हें दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया। अब राजा के आदेश को शिरोधार्य करते हुए बाबा गोस्वामी दास जी अकबर के दरबार में उपस्थित हुए और वहां पर बुलाने का कारण बादशाह अकबर से पूछा।
तब अकबर ने तुलसीदास जी से पूछा कि जो यह रोज आप के चमत्कार की चर्चाएं दरबार में हो रही है क्या यह सब सच है या फिर मनगढ़ंत (तत्वहीन, असत्य) कथाएं हैं। और यह भी कहां कि यदि घटनाएं सब सच है तो आपको कुछ ऐसा चमत्कार दरबार में करना होगा। इस पर तुलसीदास जी ने प्रतिउत्तर देते हुए कहां कि यह बात मेरी प्रकृति और प्रवृत्ति दोनों के विपरीत हैं -
जो इच्छा करिहहु मन माहीं।
रामकृपा कछु दुर्लभ नाहीं।।
और बोले की मेरा किया हुआ कुछ नही है सब कुछ मेरे प्रभु राम का किया है वही मेरे सर्वस्य हैं और मैं उनका हूँ।। यह सुनकर बादशाह की गुस्सा का परावार न रहा और उसने अपने सैनिको को बाबा तुलसीदास जी को बंदी बनाकर कैदखाने में डालने का आदेश दे दिया।
आदेश के पालन में सैनिको ने बाबा तुलसीदास जी को जेल (कारावास) में बंद कर दिया। तब गोस्वामी तुलसीदास जी ने बंदीग्रह से मुक्ति के लिए हनुमान जी का स्मरण करते हुए हनुमान चालीसा की रचना की। और रचना के उपरांत इसका सौ बार निरंतर पाठ किया।
जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जैसे ही तुलसीदास जी के हनुमान चालीसा के 100 पाठ पूर्ण हुए वैसे ही हनुमान जी के रुप में लाखों की संख्या में बंदरों ने दिल्ली पर आतंक मचाना शुरु कर दिया । बंदरों के आक्रमण की बात को अकबर तक पहुचते देर न लगी और जैसे ही उसके पास यह बात पहुची तो सैनिको ने कहा कि यदि समय रहते हुए बाबा तुलसी को रिहा नही किया तो बंदरो से पूरी जनता और राज्यपरिवार दुख में आ जायेगा। अब ऐसे में अकबर के पास तुलसीदास जी के समझ झुकने के अतिरिक्त अन्य कोई बिकल्प नही था। तब अकबर ने बिना देरी किए हुए तुलसीदास जी से क्षमा याचना की और गलती की सजा मांगी तब तुलसीदास जी ने तत्कालीन गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने का वचन अकबर के समक्ष रखा । जिसे अकबर ने स्वीकार करके गौहत्या पर रोक लगाने का फरमान जारी किया था। इसके पश्चात तुलसीदास जी को अकबर ने ससम्मान रिहा किया और अपनी गलती पर शर्मिंदा हुआ। तुलसीदास जी के बंधन मुक्त होते ही धीरे-धीरे दिल्ली से बंदरों का प्रकोप शांत हुआ। यह कथा गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन की सच्ची घटना पर आधारित है। जिसको वास्तु आर्ट के सह-संस्थापक रविन्द्र दाधीच जी ने भक्तशिरोमणि पूज्यपाद श्री तुलसीदास जी की जन्म जयंती पर प्रस्तुत की है।
वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)