सुखदुःखकरं कर्म शुभाशुभमुहूर्त्तजं ।
जन्मान्तरेऽपि तत् कुर्यात् फलं तस्यान्वयोऽपि वा ॥
भारतीय संस्कृति में जिस प्रकार से सोडस संस्कार होते है। उसी प्रकार से मुहूर्त संस्कार भी होते है। जिसका निर्माण ज्योतिष शास्त्र ने वार, नक्षत्र, तिथि, करण, नित्ययोग, ग्रह, राशि के आधार पर किया है।
ज्योतिष के द्वारा विभिन्न कार्य आरंभ करने के लिए प्राचीन काल में मुहूर्तों का निर्माण हुआ है। जो ज्योतिष के अकाट्य सिद्धांतो पर आधारित हैं और पूर्णतः प्रामाणित हैं। शुभ मुहूर्त एक विशेष प्रकार का समय अंश होता है। इस समय के दौरान जो भी कार्य प्रारंभ किए जाते हैं। उसमें सफलता प्राप्ति की सबसे ज्यादा संभावना होती है।
जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त मनुष्य अनन्त गतिविधियों से होकर गुजरता है। जो गतिविधियाँ मुहूर्त के अनुसार विधि-विधानपूर्वक सम्पन्न होती हैं। उनके फल अवश्य ही शुभ मिलते हैं। इसी कारण महत्वपूर्ण मुहूर्त में ही ग्रह प्रवेश तथा अन्य कार्य करना चाहिए।
वास्तु आर्ट टीम वास्तु विशेषज्ञों एवं रविन्द्र दाधीच जी ने गृह प्रवेश के शुभ मुहूर्त पर विस्तार से विचार किया है। जिसके विशेष अंश निम्नलिखित लेख में इस प्रकार से दीए गये हैं।
शुभ मुहूर्त के संदर्भ में प्राचीन काल से ही यह भारतीय परंपरा चली आ रही है। कि राज्यभिषेक, यात्रारम्भ, गृह निर्माण, वधु-प्रवेश आदि के शुभ मुहूर्त होते है। ठीक उसी प्रकार ग्रह प्रवेश के भी विशेष मुहू्र्त होते हैं।
वैदिक काल के प्रारंभ से लेकर अब तक किसी भी कार्य की शुरुआत करने के लिए लिए शुभ मुहूर्त चयन का विधान रहा है। शुभ मुहूर्त को लेकर ऐसी मान्यता है । कि यदि आप किसी भी कार्य को शुभ मुहूर्त में शुरु करते हैं। तो वह बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जायेगा। ऐसा हमारे प्राचीन ऋषियों ने अपने सिद्धांतो में वर्णन किया है।
यदि आप अपने जीवन में सभी काम सही समय और शुभ मुहुर्त में करते हैं। तो आपकी सफलता में किसी भी प्रकार का संदेह नही रह जायेगा।
शुभ मुहूर्त के संबंध में ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र का मत है। कि यदि आपने किसी काम की शुरुआत अशुभ मुहूर्त में की है। तो कार्य को पूर्ण होने में अधिक समय लगेगा या फिर कार्य देरी से पूर्ण होगा या फिर कार्य में किसी न किसी प्रकार की बाधाए आएंगी। इस सभी मतों से एक बात तो निकल कर आती है । वह है, कि यदि शुभ मुहूर्त हमारे भाग्य में वृद्धि नही कर सकता है। तो कार्य की सफलता में आने वाली बाधाओं को दूर जरुर करता है। अब शायद आप समझ ही गये होगें। कि क्यों हमें किसी भी कार्य की शुरुआत शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए।
हिन्दू संस्कृति और वास्तुशास्त्र दोनों में शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। क्योंकि शुभ मुहूर्त में किए गये कार्य में जल्दी सफलता प्राप्त होती है। भारतीय संस्कृति में पंचांग, मुहूर्त, अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष में शुभ मुहूर्त का गहरा संबंध है। इसलिए शुभ मुहूर्त का चयन करना जरुरी होता है। जब बात आती है। नये घर में प्रवेश या नये ऑफिस में प्रवेश करने करने से पहले मन में यह विचार आता है। कि हम कौन से शुभ मुहूर्त में ऑफिस में प्रवेश करें। ताकि हमारे व्यायापार में किसी प्रकार की बाधाएँ न आएं।
ऑफिस में प्रवेश समारोह शुभ मुहूर्त में करने से सौभाग्य और समृद्धि आती है। वास्तु शास्त्र में इस बात का वर्णन मिलता है। कि यदि आप शुभ मुहूर्त में ऑफिस प्रवेश या ऑफिस में पूजा करते हैं। तो कंपनी मालिक और कर्चचारियों को सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य, शांति और खुशियों का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
मुहूर्त हमेशा जन्म के नाम के आधार पर ही निकालना चाहिए। जन्म नाम के अभाव में चलतू नाम (बोलता नाम) से ही निकालना चाहिए।
शुभ मुहूर्त को पंचांग तथा ज्यातिष शास्त्र की मदद से ग्रहों की गणना के आधार पर निकालता जाता है। शुभ मुहूर्त में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है।
शुभ मुहूर्त के लिए दिन, तिथि, समय, नक्षत्र, योग, करण, नवग्रहों की स्थिति, मलमास, शुक्र-गुरु ग्रह के उदय और अस्त की स्थिति, शुभ योग, भद्रा, शुभ लग्न, तथा राहुकाल इत्यादि का समायोजन करके ही ज्योतिष के विद्वान शुभ मुहूर्त की गणना करते है।
यदि आप सर्वार्थसिद्धि योग, गुरु-पुष्य योग और गुरुवार के दिन चन्द्र ग्रह पुष्य नक्षत्र में हो तो ऐसे में आप अपने नये ऑफिस में प्रवेश कर सकते है। इसके अतिरिक्त सोमवार के दिन चतुर्दशी या फिर मंगलवार के दिन पूर्णिमा-अमावस्या पड़ती है। तो सिद्धदायक शुभ मुहूर्त का निर्माण होता है। ऐसे योग में यदि आप अपने ऑफिस में प्रवेश करते है। तो ऑफिस के हर काम समय से पूरे होगे और विघ्न-बाधाएं नही आएंगी। मंगलवार को मुहूर्त नही करना चाहिए। तथा अमावस्या व तिथि क्षय को मुहूर्त नही करना चाहिए।
ऑफिस में प्रवेश करने से पहले यदि आप शुभ मुहूर्त के बारे में अधिक जानकारी नही रखते है। तो किसी अच्छे ज्योतिष शास्त्री या फिर वास्तुशास्त्री से इस बारे में आप परामर्श कर सकते हैं।
जब जन्म कुण्डली के 2, 10 और 11 भावों में शुभ गृह हो तथा 3 और 6 वें भाव में पाप गृह विराजमान हो और 8 तथा 12वां स्थान पाप रहित हो । और इसके अलावा चन्द्र , शुक्र लग्न में हो तो अत्युत्तम। तथा प्रारंभकर्ता की दशान्तर्दशा भी शुभ होनी चाहिए। ऐसे मुहूर्त में यदि आप अपने दुकान या ऑफिस का उद्घाटन करते हैं। तो व्यापार-धंधे में अच्छी प्रगति होती है।
मुहूर्त शास्त्र के अनुसार रिक्ता तिथि और मंगलवार को अर्थात कृष्ण-पक्ष और शुक्ल-पक्ष की 4, 9, और 14 तिथि अर्थात चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी तिथियों में कोई भी नया कार्य प्रारंभ नही करना चाहिए। इन तिथियों में कोई भी मांगलिक कार्य, नया व्यापार, गृहप्रवेश आदि नहीं करना चाहिए लेकिन मेले, तीर्थ यात्राओं आदि के लिए यह ठीक मानी गई हैं।
दुकान खोलते समय या ऑफिस में प्रवेश के समय यदि हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, रोहणी नक्षत्र, रेवती नक्षत्र, तीनों उत्तरा नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, अश्विनी नक्षत्र, अभिजीत नक्षत्र में यदि कुम्भ लग्न हो तो ऐसे मुहूर्त में कोई भी नया काम शुरु नही करना चाहिए।
जब अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, उत्तरा के तीनों नक्षत्र, हस्त, चित्रा, अनुराधा, श्रवण, रेवती, नक्षत्रों में रिक्तमास रहित तिथि, राहु, चंद्र, बुध, गुरु, शनि, वार, चर द्विस्वभाव शुभयुत दृष्ट लग्न, केन्द्र त्रिकोण में शुभ गृह हो और 8/12 वें स्थान में पापग्रह नहीं होने पर शुभ होता है।
भारतीय पंचांग के अनुसार यदि आप अश्विनी, मृगशिरा, चित्रा, हस्त, पुष्य, अनुराधा, रेवती नक्षत्र रिक्तामावसरहित तिथि र. चं बु गु शु वार, शुभ ग्रह लग्न में हो और 10वें या 11वें में सूर्य मंगल हो तो अतिउत्तम होता है। स्वामी और सेवक की राशि परस्पर राशीश मैत्री हो तो सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
रत्नस्थापना- व्यापार में अच्छी ख्याति, प्रसिद्धि और निरंतर वृद्धि के लिए रत्न स्थापना का विधान है। यदि आपका व्यापार मंदगति से चलता है। तो उसको गति देने के लिए आप अपनी कंपनी या फिर ऑफिस में अभिमंत्रित मंत्रों के उच्चारण से किसी अच्छे कर्मकाण्डी ब्रह्माण द्वारा रत्न स्थापना कराकर व्यापार को ऊंचाईयों तक पहुंचा सकते है।ज्यातिष शास्त्र के अनुसार बहुत प्रकार के रत्न होते है। इन रत्नों की स्थापना आपकी जन्म कुण्डली के आधार पर होती है। यद ज्योतिषाचार्य या फिर वास्तु शास्त्री ही तय करेंगे। कि आपके ऑफिस में कौन-कौन से रत्नों की स्थापना होती है। जो आपके व्यापार और ऑफिस की ब्रांडिंग में वृद्धि करेंगे।
रत्न स्थापना के समय यदि संभव हो तो ऐसे विद्वानों का चनय करें। जो वास्तु शास्त्र के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र के भी ज्ञाता हो। क्योंकि कौन से स्थान में किस रत्न विशेष की स्थापना करनी है। यह वही अच्छे से समझ कर चयन करेंगे।
उदाहरण के लिए जैसे - ब्रह्म स्थान के बगल में पूर्व दिशा में मूंगा रत्न की स्थापना का वर्णन वास्तु और ज्योतिष शास्त्र में देखने को मिलता है। इसी प्रकार अन्य रत्नों की स्थापना की अलग-अलग जगह और अलग-अलग दिशाएं है।
वास्तु विशेषज्ञों की राय है। कि जिस दिशा में अधिक दोष हैं। वहां पर आप रत्नों की संख्या में वृद्धि भी कर सकते है। उदाहरण के लिए आप वहां पर एक रत्न की जगह पर दो रत्नों की स्थापना करवा सकते हैं।
रत्न स्थापना से संबंधित अधिक जानकारी के लिए आप वास्तु आर्ट के के विशेषज्ञों की टीम से संपर्क करके अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
ऑफिस में प्रवेश या फिर किसी कंपनी की शुरुआत हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ और हवन के साथ ही होती हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आई है और इसके पीछे वास्तु शास्त्र में धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी बताया गया है। कहां जाता है, कि हवन और पूजा-पाठ से ऑफिस तथा कंपनी के माहौल सकारात्मक ऊर्जा आती है और बुरी आत्माओं का प्रभाव खत्म होता है।
इसके साथ यदि कंपनी का बॉस या फिर एमडी कुण्डली के ग्रह दोषों से परेशान है। तो हवन एवं पूजन-पाठ से उनकी परेशानियों को कम किया जा सकता है।
हवन के महत्व को बताते हुए वास्तु आर्ट टीम के विशेषज्ञ कहते है। कि ऑफिस में प्रवेश करने से पहले यदि आप हवन इत्यादि धार्मिक अनुष्ठान करवाते है। तो हवन से निकलने वाला धुंआ आपके ऑफिस के वातावरण को शुद्ध कर देगा। हवन से निकलने वाला धुंआ सेहत और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। हवन के धार्मिक महत्व के साथ इसके और भी अन्य फायेदे है। जैसे कि हवन से बीमारियों को कम किया जाता है। हवन के संदर्भ में वर्णन है। कि हवन का धुंआ 94 प्रतिशत हानिकारण जीवाणु, विषाणुओ को खत्म खरने की ताकत रखता है।
वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)