ऑफिस का ब्रह्म स्थान कैसा होना चाहिए ?
ऊँ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्धि सीमतः सुरुचो वेन आवः।
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः ।।
हर किसी को अपने ऑफिस के मध्य में खुली और खाली जगह रखने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि यह जगह आपके ऑफिस का ब्रह्म स्थान होती है। यहीं ब्रह्म स्थान वास्तु दोषों को नियंत्रित करता है। इसके साथ साथ यहीं से पूरे ऑफिस में हवा एवं प्रकाश का आवागमन होता रहता है। वास्तुशास्त्र के नियम कहते है। कि ब्रह्म स्थान वास्तुपुरुष की नाभि होता है। जिस प्रकार से पेट पूरे शरीर का पोषण और भरण करता है। ठीक उसी प्रकार ब्रह्म स्थान भी पूरे ऑफिस में शुद्ध हवा (pure air), अच्छी रोशनी, एवं सकारात्मक ऊर्जा (Positive energy) का संचार बना रहता है।
ब्रह्म स्थान से जुड़ी कुछ खास बातें जिनका ध्यान हर किसी को रखना चाहिए -
- सबसे पहले और मुख्य बात की ब्रह्म स्थान में किसी भी प्रकार का वेध नही होना चाहिए।
- ब्रह्म स्थान को हमेशा खाली रखना चाहिए।
- यदि किसी कारण या वास्तु की जानकारी न होने पर ब्रह्म स्थान में वेध, गड्ढा, टॉयलेट, सेफ्टी टैंक, शाफ्ट, सीढ़ी, किचन (रसोई), लिफ्ट आ जाती है। तो ऑफिस में सदैव स्टॉफ की कमी रहती है। कर्मचारियों का पर्याप्त सहयोग नही मिल पाता है। और आर्थिक गतिविधिया(पैसे का लेनदेन) प्रभावित होता रहता है
- यदि ब्रह्म स्थान के मध्य में कोई वेध होता है। तो समय की बर्बादी होती है। ऑफिस के कार्य समय पर पूर्ण नही होते है।
- ब्रह्म स्थान में बीम, खंभा, भूमिगत जल, पानी की टंकी, बोर इत्यादि नही होने चाहिए।
- ब्रह्म स्थान में आग से संबंधिक कोई भी कार्य से संबंधित गतिविधियों का संचालन नही करना चाहिए।
- ब्रह्म स्थान में अध्यात्म और दर्शन से संबंधित कार्य करना चाहिए। ब्रह्म स्थान में रामायण का पाठ, सुन्दरकाण्ड का पाठ, भजन, कीर्तन एवं गीता का पाठ होना चाहिए। ऐसा करने से पूरे ऑफिस का माहौल बेहतर होता है। एवं कर्मचारियों में सहयोग की भावना जागृत होती है ।
वास्तुशास्त्र का वेध से तात्पर्य है कि - गड्ढ़ा, फ्लोरिंग, बीम, हैबी फर्नीचर, कॉलम, दरवाजा, खिड़की, दीवार, खंभा इत्यादि।
ब्रह्म स्थान की इन दिशाओं में बेध होने से कैसी-कैसी परेशानियां व्यापार में आ सकती है -
- उत्तर दिशा में वेध होने से निम्नलिखित परेशानिया आती है
- ब्रांड की ब्रांडिंग (Development) सही से नही हो पाती है।
- माल की प्रति लोगों में विश्वासनीयता नही बढ़ती है अर्थात आपके ब्रांड को लेकर लोगों के मन में संशय का भाव रहता है।
- माल रिजेक्ट हो जाता है। अर्थात आपका ब्रांड लोगों की पसंद के अनुरुप नही उतरता है।
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पूर्व दिशा में वेध होने से किस तरीके की परेशानियां आती है।
- कंपनी के कार्य का आधार ठीक नही होगा। अर्थात कंपनी के मालिक ठीक से कंपनी में प्लानिंग नही कर पायेगा।
- कार्य की नीव कमजोर रहेगी।
- कार्य में परिपक्वता नही होगी ।
- कंपनी में काम लंबा नही चलेगा अर्थात आपके कंपनी की उम्र बहुत अधिक नही होगी।
- दक्षिण दिशा में वेध होने पर किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- कार्य के क्रियान्वन में समस्या रहेगी।
- मशीनों में खराबी आयेगी और मशीने ठीक से काम नही कर पायेंगी।
- मशीनो का समय पर अपडेशन नही होगा।
- पश्चिम दिशा में वेध होने पर किस तरह से समस्याएं उत्पन्न होती है ।
- कंपनी में अच्छे आदमियों और स्टॉफ की हमेशा कमी बनी रहेगी।
- कंपनी के कर्मचारियों का आपस में सहयोग नही मिलेगा।
- स्टॉफ अपनी योग्यता के अनुरुप कार्य नही करेगा।
- पैसे की कमी से कार्य में रुकावट आयेगी।
- गुणवत्ता में कमी होगी।
- मध्य में अर्थात ब्रह्म स्थान में वेध होने पर किस तरह की परेशानियों कंपनी के अंदर देखने को मिलती है
- समय और धन से संबंधित बर्बादी देखने को मिलती है।
- कंपनी के अंदर अच्छी ग्रोथ (उन्नति) नही होती है।
- ऑफिस के अंदर सही प्रकार के निर्णय लेने में दिक्कत होना।
वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)