नवरात्रि के पावन दिन चल रहे हैं, ऐसे में हर हिंदू घर में माता भगवती की घट स्थापना के साथ उनका पूजन-वंदन श्रद्धा के चल रहा है। तो ऐसे पावन पर्व पर हम जानेंगे माँ भगवती के पूजन का वर्णन जोकि शास्त्रों में दिया गया है।
देवी भागवत में माँ भगवती की पूजा-विधि का उल्लेख विस्तार से मिलता है, जिसमें राजा सुरथ जगदम्बा माँ के आराधना की विधि सुमेधा जी से पूछते हैं और कहते हैं, कि अब भगवती जगदम्बा के आराधना की विधि सम्यक् प्रकार से मुझे बताने की कृपा करें। साथ ही पूजा विधि, होम-विधि और मंत्र भी स्पष्ट करके बता दें। तब
सुमेधा जी कहते हैं- राजन् ! सुनो, मैं भगवती की पूजा का उत्तम प्रकार बताता हूँ। इसके प्रभाव से मनुष्यों की अभिलाषाएँ पूर्ण हो जाती हैं। वे परम सुखी, ज्ञानी और मोक्ष के अधिकारी बन जाते हैं। मनुष्य को चाहिये कि पहले विधिपूर्वक स्नान करके पवित्र हो स्वच्छ वस्त्र धारण कर ले। सावधानी से आचमन करके अपना शरीर पवित्र कर लेना करें। तदनन्तर धुली और लिपी हुई भूमि पर उत्तम आसन बिछा ले, उस पर बैठकर बड़ी प्रसन्नता के साथ तीन बार विधिवत आचमन करे। अपनी शक्ति के अनुसार पूजन की सामग्रियाँ पास रख ले। प्राणायाम करने के पश्चात् भूत शुद्धि करे। मंत्र पढ़कर सभी व सामग्रियों पर जल के छींटे दे। फिर प्राण प्रतिष्ठा करे , समय का ज्ञान अवश्य रखना चाहिये। विधि पूर्वक मातृका-न्यास करे। ताँबे का एक पवित्र पात्र चाहिये। उसमें श्वेतचन्दन अथवा 8 अष्टगन्ध से षट्कोण यन्त्र लिखे। उसके बाहर अष्टकोण यन्त्र लिखना चाहिये। नवार्ण मन्त्र के आठ बीज अक्षर आठों कोणों में लिखे जायँ । नवाँ अक्षर कर्णिका के मध्य भाग में लिखा जाता है। फिर वेद में बताई हुई विधि के अनुसार उस यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा होनी चाहिये। यन्त्र के अभाव में भगवती की धातुमयी प्रतिमा बनवाने का विधान है।
राजन् ! चामल आदि पूजन के जो कहे गये हैं, उनका पूजन करके यत्रपूर्वक भगवती की पूजा करनी चाहिये। | खूब सावधान होकर वेदोक्त विधि से विधिवत् पूजा करने के पश्चात् नवार्ण मन्त्र का जप करे। मन से माँ भगवती का ध्यान करें। दशांश हवन करे। हवन का दशांश तर्पण, उसका दशांश मार्जन और उसका दशांश ब्राह्मण भोजन होना चाहिये। प्रतिदिन तीन चरित्रों का पाठ होना आवश्यक है।
फिर विसर्जन करना चाहिये। विधि के साथ नवरात्र व्रत करने का भी विधान है।
सुमेधा जी आगे कहते हैं, कि राजन् ! कल्याण चाहने वाले पुरुष को चाहिये, आश्विन और चैत्र के शुक्ल पक्ष में नवरात्र व्रत करे। हवन विस्तार पूर्वक होना चाहिये। अनुष्ठान में लिये हुए मन्त्र पढ़कर पवित्र खीर से हवन करे। उस खीर में घी, चीनी और शहद मिला लेने चाहिये। उत्तम बिल्वपत्र से भी हवन होता है। शक्कर मिश्रित तिल से भी हवन करने की बात मिलती है।
अष्टमी, नवमी के दिन भगवती की विशेष रूप से पूजा होनी चाहिये। उस अवसर पर ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिये। ऐसा करने से निर्धन व्यक्ति धनवान् हो जाता है, रोगी के रोग दूर हो जाते हैं, संतानहीन को सदा पिता की आज्ञा में तत्पर रहने वाले सुपुत्र प्राप्त होते हैं, राज्यच्युत नरेश को अखिल भूमण्डल का राज्य सुलभ हो जाता है।
भगवती महामाया की कृपा से शत्रु द्वारा पीड़ित व्यक्ति में ऐसी शक्ति आ जाती है कि वह उसे परास्त कर देता है। जो विद्यार्थी इन्द्रियों को वश में करके भगवती की आराधना करता है, सुमेधा द्वारा देवी की उत्तम विद्या मिल जाती है-इसमें कोई संशय नहीं है।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र-सभी भगवती जगदम्बा की पूजा के अधिकारी है। भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिये, फिर तो वह सम्पूर्ण सुख का भागी हो सकता है। जो स्त्री अथवा पुरुष भक्ति में तत्पर होकर नवरात्र व्रत करता है, उसका मनोरथ कभी विफल नहीं रह सकता। आश्विन शुक्ल पक्ष के उत्तम नवरात्र को जो भक्ति भाव के साथ करता है, उसकी सम्पूर्ण कामनाएँ सिद्ध हो जाती हैं।
विधिवत् मण्डल बनाकर पूजा के स्थान का निर्माण करना चाहिये। फिर वेद के मन्त्र की विधि से कलश स्थापना करे। यन्त्र को भली भाँति ठीक करके उस कलश के ऊपर रख दे। कलश के चारों ओर उत्तम जौ बो दिये जायें। ऊपर चाँदनी लगा देनी चाहिये। फूल के हारों से चाँदनी सुशोभित हो। जहाँ भगवती की स्थापना की जाय, वह घर धूप-दी पसे सदा सम्पन्न रहना चाहिये । प्रातः, मध्याह्न और संध्या- तीनों समय भगवती की पूजा करे। देवी चण्डिका के पूजन में शक्ति के अनुसार पर्याप्त धन व्यय करे। कृपणता न करे। धूप, दीप, नैवेद्य, फल, फूल, गीत, वाद्य, स्तोत्र पाठ और वेद पारायण - इन सभी उपचारों से देवी का पूजन सम्पन्न होता है।
अनेक प्रकार के बाजे बजें और उत्सव मनाया जाय। कन्याओं का विधिवत् पूजन करे। वस्त्र, भूषण, चन्दन, अनेक प्रकार के भोज्यपदार्थ, सुगन्धित तैल और हार-मन को प्रसन्न करने वाली इन सामग्रियों से कन्याओं की पूजा करे !
इस प्रकार पूजा की विधि सम्पन्न करके मन्त्र द्वारा हवन करना चाहिये। अष्टमी तथा नवमी-किसी दिन विधि के साथ हवन कर सकते हैं। फिर ब्राह्मणों को भोजन करावे । नवरात्र व्रत का पारण दसवें दिन करना चाहिये। भक्तिनिष्ठ राजा अपनी शक्ति के अनुसार धन दान करें।
इस प्रकार जो पुरुष श्रद्धापूर्वक नवरात्र व्रत करता है अथवा सधवा या विधवा पतिव्रता स्त्री करती है तो उन्हें इस लोक में सुख एवं मनोऽभिलषित भोग सुलभ हो जाते हैं और शरीर छोड़ने पर वे दिव्य स्थान प्राप्त करते हैं। दूसरे जन्म में भी भगवती जगदम्बा की ठीक वैसी ही भक्ति हृदय में स्फुरित हो जाती है। व्रती पुरुष का उत्तम कुल में जन्म होता है। वह सदाचारी जीवन व्यतीत करता है। यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण व्रतों में श्रेष्ठ कहा गया है। इस व्रत के करने से प्राणी समस्त सुखों के भागी हो जाते हैं।
राजन् ! तुम इसी विधि के अनुसार भगवती चण्डिका की आराधना करो। फिर तो तुम्हारे सम्पूर्ण शत्रु परास्त हो जायँगे और तुम सर्वोत्तम राज्य पा जाओगे। भूपाल ! तुम्हारा शरीर परम सुखी हो जायगा। तुम्हारे भवन में दुःख नहीं ठहर सकेंगे। फिर तुम्हारे स्त्री और पुत्र तुम्हें मिल जायँगे - इसमें कोई संदेह नहीं है।
आदरणीय वैश्य ! अब तुम भी इन्हीं भगवती महामाया की आराधना करो। ये विश्व की अधिष्ठात्री हैं। सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करना इनका स्वभाव ही है। सृष्टि और संहार कार्य इन्हीं से सम्पन्न होते हैं। भगवती के प्रसाद से घर जाने पर बन्धु-बान्धव तुम्हारा आदर करेंगे, फिर सांसारिक यथेष्ट सुख भोगने के पश्चात् देवी के पावन लोक में तुम वास करोगे - इसमें कोई संशय नहीं मानना चाहिये।
राजन् ! जो भगवती की उपासना नहीं करते हैं, उन्हें नरक में जाना पड़ता है। अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त होकर वे संसार में दुःख भोगते हैं। शत्रुओं से उनकी हार हो जाती है। स्त्री और पुत्र से वियोग हो जाता है तृष्णा सताने लगती है। वे बुद्धि से कुछ भी निर्णय नहीं कर पाते।
जो बिल्वपत्र, करवीर, कमल और चम्पा आदि फूलों से भगवती जगदम्बा की पूजा करते हैं, उन्हें अत्यन्त सुखी जीवन भोगने का शुभ अवसर प्राप्त होता है भगवती की भक्ति में तत्पर रहने वाले वे पुरुष धन्यवाद के पात्र हैं। जो वेदोक्त मन्त्रों द्वारा देवी की आराधना करते हैं, वे मानव इस लोक में प्रचुर धनी, समस्त शुभ गुणों का भंडार तथा राजाओं के सिरमौर होते हैं।
वास्तु विद् -रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)