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भवन वास्तु (मकान वास्तु)
घर निर्माण में क्यों आवश्यक है वास्तु

घर को सुखी और समृद्ध बनाने के लिए वास्तु टिप्स:

हर कोई अपना ऐसा घर बनाना या खरीदना चाहता है, जिसमें उसको शांति, खुशी और सकारात्मक वाइब्स (positive vibes) लाए। ऐसा माना जाता है, कि जो घर वास्तु सिद्धांतों के अनुसार बनता है, वह अपने निवासियों (रहने वालों) के लिए सौभाग्य और समृद्धि लाता है। सभी लोगों के लिए भोजन और कपड़े और एक आरामदायक आवास आवश्यक होता है। वास्तु शास्त्र के नियम स्थायित्व प्रदान करते हैं। क्योंकि इन वास्तु सिद्धांतों के पीछे होते है, वैज्ञानिक कारण, सौंदर्य निर्माण जो आवासीय स्थान को सफल जीवन में परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं। वास्तु घर की सभी ऊर्जाओं को संतुलित करती है और एक भूखण्ड (प्लाट) को घर (भवन) बनाने के लिए सही प्रकार की ऊर्जा का विकास करती है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार हर घर की अपनी एक ऊर्जा होती है। एक घर में रहने वाला व्यक्ति एक विशिष्ट ऊर्जा क्षेत्र के प्रभाव में आता है, जो उसे किसी न किसी तरह से प्रभावित करता है। इस प्रकार, हमारे घरों के बीच संबंधों को अच्छी तरह से समझना और सकारात्मकता का सम्मान करना, और वास्तु की उपचार कला को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। नीचे दिए गए पांच महत्वपूर्ण पहलू हैं जिन्हें घर चाहने वाले पूरी तरह से जांच सकते हैं, यह पता लगाने के लिए कि वे जिस संपत्ति को खरीदने की योजना बना रहे हैं वह मूल वास्तु सिद्धांतों के अनुसार बनाई गई है या नहीं।

घर बनाने के लिए प्लॉट की कौन सी दिशा होती है शुभ ?

वास्तु के अनुसार प्लॉट और निर्माण की दिशा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होनी चाहिए। उत्तर दिशा धन और धन के देवता कुबेर की दिशा है। इसे माता का स्थान माना जाता है। यदि उत्तर दिशा की ओर कोई खुला स्थान नहीं बचा है, तो यह घर की महिला पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और दाम्पत्य संतुष्टि से भी वंचित करता है। पूर्व को देवताओं के राजा इंद्र का स्थान माना जाता है। इंद्र सुख, समृद्धि और वर्षा के देवता हैं। आम धारणा है, कि घर के निर्माण के लिए पूर्व और उत्तर मुखी प्लॉट सबसे उपयुक्त होते हैं। मुख्य द्वार पूर्व की ओर रखना बहुत शुभ माना जाता है। यदि पूर्व की ओर कोई खुली जगह नहीं बची है और निर्माण सीमा तक किया जाता है, तो ऐसा घर बिना आधार के माना जाता है। कुछ दिशाओं का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पश्चिम से पूर्व ज्यादा खुला होना चाहिए तथा दक्षिण से अधिक उत्तर ज्यादा खुला होना चाहिए। पश्चिम या दक्षिण दिशा में घरों को डिजाइन करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि दक्षिण दिशा अशुभ होती है परंतु दक्षिण मुखी व पश्चिम मुखी मकान का निर्माण करते समय द्वार चयन के विकल्प कम होते है। इस कारण इस इन दिशाओं में द्वार करने में थोड़ी की समस्या होती है।

क्या घर निर्माण के लिए प्लॉट का आकार चौकोर या आयताकार होना चाहिए:

जी हां बिल्कुल आयताकार भूखण्ड भवन निमार्ण के लिए श्रेष्ठ भूखण्डों की श्रेणी में गिने जाते हैं। जिस भूखंड की सभी भुजाएँ समान हों और सभी कोण 90° हों, वर्गाकार भूखंड कहलाता है। ऐसे प्लॉट को शुभ प्लॉट माना जाता है। यह निवासियों को अच्छा स्वास्थ्य और धन प्रदान करता है। दूसरी ओर, एक भूखंड जिसमें दो लंबी और दो छोटी भुजाएँ होती हैं और सभी कोण 90 डिग्री के होते हैं, ऐसे प्लाट आयताकार भूखंड कहलाते हैं। ऐसे भूखंड पर घर बनाने से अच्छा स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है। यह व्यक्ति जो कुछ भी करता है उसमें सफलता दिलाने में मदद करता है। लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 2:1 होना चाहिए।

आवासीय भवन यदि शेरमुखी या गौमुखी है तो घर के व्यक्तियों पर कैसा रहता है इसका प्रभाव -

वास्तु शास्त्र में 'शेरमुखी' और 'गौमुखी' भूखंडों के आकार का अपना अलग-अलग महत्व है। भूखंड के आकार घर में रहने वालों की उन्नति और समृद्धि में वृद्धि करते हैं। 'गौमुखी' आकार का प्लॉट प्रवेश द्वार (मुख्य द्वार) पर संकरा और पीछे चौड़ा होता है, जबकि 'शेर मुखी' आकार का प्लॉट प्रवेश द्वार पर चौड़ा और पीछे संकरा होता है। गौमुखी को आवास के उद्देश्य से शुभ माना जाता है, जबकि शेर मुखी व्यावसायिक संपत्तियों के लिए सबसे उपयुक्त है। इसी तरह, उत्तर-पूर्व को छोड़कर विस्तारित कोनों (बढ़े हुए कोने) को आवासीय संपत्तियों के लिए शुभ नहीं माना जाता है।

वास्तु के अनुसार घर में कैसे रंगों का प्रयोग करना चाहिए ?

अपने घर को रंगने की योजना बनाते समय गहरे रंगों के प्रयोग से बचें। उदाहरण के लिए, काले रंग नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि करते हैं। इस प्रकार, अपने घर के फर्नीचर, दीवारों, फर्श आदि में गहरे रंगों से बचने की कोशिश करें। हल्के रंग जैसे पीला, गुलाबी, नारंगी आदि, सकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन (बढ़ाते) करते हैं और घर के अंदरूनी हिस्सों में निर्मित क्षेत्र की दिशा के अनुसार उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए नारंगी रंग भोजन क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त है और क्रीम रंग दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में मास्टर बेडरूम के लिए लागू होता है।

वास्तु की दृष्टि से घर में निर्मित कमरे कहां और कैसे होने चाहिए -

जब आपके घर में विभिन्न कमरों की व्यवस्था, फर्नीचर की व्यवस्था और अन्य वस्तुओं की बात आती है, तो वास्तु के तहत कई नियम हैं। जिनका पालन भवन निर्माण से लेकर और सजावट तक विशेष ध्यान दिय़ा जाता है।

बेडरुम (शयन कक्ष)

घर बनाते समय बेडरुम का विशेष महत्व होता है। दिन भर की थकान के बाद हर किसी को रात में पर्याप्त नींद की जरूरत होती है। जब कोई व्यक्ति अगले दिन जोश और नई योजना के साथ उठता है, तो तरोताजा महसूस करने के लिए अच्छी नींद आवश्यक है। अत: शयन कक्ष तथा उसमें पलंग (बेड) लगाते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।

  • मास्टर बेडरुम दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) की ओर होना चाहिए।
  • मुखिया का कमरा पूर्व दिशा नहीं होना चाहिए ऐसे में सेहत खराब होती है।
  • पश्चिम दिशा में बेडरूम बहुत अच्छा माना जाता है। यह कपल (दंपति) के लिए अच्छा होता है।
  • दक्षिण दिशा के कमरे में सोना सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है। यहां बच्चों का कमरा नहीं होना चाहिए।
  • बेडरूम में दक्षिण-पश्चिम की ओर, पूर्व और उत्तर की ओर अधिक जगह छोड़ते हुए बिस्तर रखें।
  • मुखिया का बेडरुम उत्तर दिशा की ओर वाले कमरे में नहीं होना चाहिए। यह हानिकारक है। परंतु यहां पर बच्चों के लिए स्टडी रुम (अध्ययन कक्ष) बनाना अच्छा होता है।
  • सोते समय सिर दक्षिण की ओर और पैर उत्तर की ओर रखें।
  • बच्चों का बेडरुम उत्तर-पूर्व (ईशान्य) या दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) की ओर हो सकता है। लेकिन यह वयस्कों के लिए उचित जगह नहीं है।
  • यदि बेडरुम उत्तर-पश्चिम (वायव्य) की ओर है, तो मन की बेचैनी गहरी नींद नहीं आने देगी।
  • मेहमानों के लिए बेडरूम उत्तर-पश्चिम की ओर होना चाहिए। वहाँ, मेहमान अधिक समय तक नहीं रुकेंगे। आवश्यकता पर उत्तर-पूर्व (North East) में या दक्षिण पूर्व (SE) में रख सकते हैं।
  • शयन कक्ष में दक्षिण-पश्चिम का कोना कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए।
  • भगवान का कमरा (मंदिर) शयन कक्ष के भीतर नहीं होना चाहिए।
  • 'परिवार के मुखिया' का बेडरुम पश्चिम की ओर, दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) कोने में होना चाहिए।
  • यदि घर बहुमंजिला है, तो 'परिवार के मुखिया' का बेडरुम दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) की ओर, ऊपरी मंजिल पर होना चाहिए। ज्येष्ठ पुत्र के लिए भी यह स्थान उपयुक्त है।
  • बच्चों का बेडरूम पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम (WSW) या दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम (SSW) की ओर नहीं होना चाहिए। यह अशांति पैदा कर सकता है।
  • फर्नीचर, अलमारी का भारी सामान दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) के दक्षिण या पश्चिम की दीवार की ओर होना चाहिए।
  • शयन कक्ष दक्षिण मुखी कमरे में हो सकता है, लेकिन दक्षिण-पश्चिम (SW) कोने में दरवाजा ठीक नहीं होता है। किसी भी हाल में दक्षिण की ओर पैर न रखें।
  • नवविवाहित जोड़े का बेडरूम पूर्व दिशा व दक्षिण पूर्व (SE) तथा उत्तर पूर्व (NE) की ओर नहीं होना चाहिए। बच्चों के लिए पूर्व दिशा का बेडरूम बहुत अच्छा होता है।
  • अविवाहित पुत्रों व विवाह योग्य लड़कियों की शादी के लिए उत्तर पश्चिम (NW) का कमरा सर्वोत्तम होता है। अतिथियों के लिए शयन कक्ष पूर्व दिशा में हो सकता है।
  • विवाहित व्यक्तियों का बेडरुम दक्षिण-पूर्व (अग्नि कोण) की ओर नहीं होना चाहिए। यह फिजूलखर्ची और परेशानी का कारण बनता है।
  • बेडरूम उत्तर-पूर्व (ईशान्य) की ओर वाले कमरे में नहीं होना चाहिए। यह प्रगति में बाधाओं का कारण बनता है, बीमारियों को लाता है और बेटियों के विवाह में देरी का कारण बनता है। यहां पर बच्चों का कमरा ठीक रहता है।
  • बेडरूम की दीवारों को हल्के हरे, गुलाबी पीले, हल्के गुलाबी या भूरे रंग में रंगा जा सकता है।
  • बिजली के उपकरण, हीटर आदि बेडरूम के दक्षिण-पूर्व (अग्नि कोण) कोने में रखना चाहिए।
  • शयन कक्ष के पश्चिमी भाग में पढ़ना या लिखना चाहिए। लेकिन पूर्वी हिस्से में कभी नहीं। परंतु मुंह उत्तर पूर्व (North-East) में होना चाहिए।
  • शयन कक्ष के पश्चिमी भाग में हवा के संचार के लिए अधिक खुली जगह होनी चाहिए। बेडरूम में पूर्व और उत्तर की ओर बड़ी खिड़कियां होनी चाहिए। दीवार में बनी अलमीरा या शोकेस दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए।

घर का लिविंग रूम (बैठक कक्ष) कैसा होना चाहिए -

लिविंगरुम घर का सबसे महत्वपूर्ण कमरा होता है। क्योंकि यह पूरे घर का वही कमरा होता है। जहां पर घर के सभी सदस्य एक साथ एकत्रित होते हैं और हंसी-मजाक, परिवारिक-रिश्तेदारों की चर्चाएं और योजनाएं तथा परिवार के फैसले यहीं पर बैठकर किए जाते है। यह कमरा वास्तु और सौंदर्य की दृष्टि से बेहतरीन होना चाहिए। क्योंकि यह अधिकतम उपयोगिता वाला कमरा होता है। घर के मालिक की सबसे अधिक गतिविधियां इसी कमरे से होती है। अगर वास्तु के नियमों का पालन किया जाए तो लिविंग रूम भी फलदायी हो जाता है।

निम्नलिखित मापदंडों पर ध्यान रखकर घर के लिविंग रूम का निर्माण करना चाहिए, जो आपके परिवार के लिए हितकर होगा -

  • लिविंग रूम को उत्तर दिशा की ओर रखना अच्छा होता है। यह दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) कोने को छोड़कर पूर्व की ओर भी हो सकता है।
  • लिविंग रूम का प्रवेश द्वार उत्तर और पूर्व की ओर होना अच्छा है। दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) की ओर नहीं होना चाहिए।
  • लिविंग रूम में कूलर पश्चिम की ओर होना चाहिए, लेकिन दक्षिण-पूर्व (अग्नि) की ओर नहीं होना चाहिए। अग्नि तत्व में पानी नहीं होना चाहिए।
  • टीवी उत्तर-पूर्व (North-East Wall ) की दीवार पर होना चाहिए, क्योंकि इससे आपका मुंह ठीक दिशा में रहता है।
  • लिविंग रूम को काले या लाल रंग में नहीं रंगना चाहिए। हरे, नीले या पीले/क्रीम के रंगों का उपयोग करना अच्छा है।
  • लिविंग रूम के मुख्य द्वार के ऊपर, दीवार के बाहरी तरफ भगवान गणेश का फोटो लगाना चाहिए।
  • फर्नीचर पश्चिम या दक्षिण दिशा में रखना चाहिए। इस क्षेत्र में फर्नीचर, शोकेस और अतिरिक्त कुर्सियों का भारी सामान भी रखा जाता है।
  • परिवार के मुखिया को इस कमरे में पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए। सोफे आदि की व्यवस्था उसी के अनुसार करनी चाहिए।
  • लिविंग रूम में त्रिकोणीय, विषम आकार, अंडाकार (अंडे के आकार का), हेक्सागोनल फर्नीचर नहीं होना चाहिए तथा कमरे का आकार भी वैसा नहीं होना चाहिए।
  • लिविंग रूम में हिंसक जानवरों, पक्षियों, रोती हुई लड़की या महिला की तस्वीर या महाभारत के चित्र नहीं होने चाहिए। इसके अतिरिक्त नग्न व्यक्ति की तस्वीर, गंदगी वाली तस्वीर इत्यादि नहीं होनी चाहिए।

घर की बालकनी कहां पर होनी चाहिए ?

घर की बालकनी हमारे घर का सबसे आकर्षक हिस्सा होता है। घर की बालकनी हमारे मकान का वह हिस्सा होती है, जहां से घर के बाहर और भीतर दोनों ओर की निगरानी कर सकते हैं। घर की बालकनी में बैठकर शुद्ध हवा का आनंद ले सकते हैं। इसलिए बालकनी के निर्माण वास्तु के कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए , जिससे बालकनी वास्तुदोष मुक्त हो। बालकनी के माध्यम से घर में शुद्ध हवा और पर्याप्त रोशनी आती रहती है। घर-परिवार के सदस्य बालकनी में कुर्सी लगाकर घर बाहर के खूबसूरत नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं।

यदि आप घर के बाहर घूमने नहीं जा पा रहे है तो घर की बालकनी में टहल कर अपने मन को शांत कर सकते हैं। शाम की चाय का लुफ्त इसी बालकनी में बैठकर ले सकते हैं। बच्चों के साथ छोटे-मोटे खेल के साथ आप यहां पर बैठकर शांति के साथ किताबें भी पढ़ सकते हैं।

  • कुछ खुली जगह छोड़ कर पूर्व और उत्तर दिशा की ओर बालकनी का निर्माण करना चाहिए।
  • बरामदे के लिए पत्थर की चिनाई, आरसीसी/स्लैब का प्रयोग करना चाहिए। बरामदे में लोहे की चादर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • पूर्व-पश्चिम दिशा में झूला लटकाया जा सकता है।
  • छोटे गमले के पौधे को सुंदरीकरण के लिए रखा जा सकता है।
  • उत्तर (North) की बालकनी दक्षिण (South) से बड़ी होनी चाहिए ।
  • पूर्व (East) की बालकनी पश्चिम (West) से बड़ी होनी चाहिए।
  • बालकनी में पेड़-पौधे लगाने चाहिए।
  • बालकनी का ढ़ाल उत्तर पूर्व (North-East) की तरफ होना चाहिए।
  • बालकनी का उत्तर पूर्व (North-East) में नीचा होना चाहिए और दक्षिणपूर्व (SE) व दक्षिण पश्चिम (SW) ऊँचा होना चाहिए।

घर का रसोई घर कहां पर होना चाहिए -

वास्तुशास्त्र में कहा गया है। कि यदि गलत दिशा में घर की रसोई का निर्माण हो जाता है, तो घर की स्त्रियों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। घर के अन्य सदस्यों को भी बीमारियों से दो-चार होना पड़ता है।

हर घर में रसोई की एक खास भूमिका होती है, क्योंकि इसी रसोई में पकने वाला भोजन आपको स्वस्थ, तंदुरुस्त और तनाव मुक्त रखता है।

  • रसोई घर के दक्षिण-पूर्व (अग्नि) कोण में होनी चाहिए। गैस, चूल्हा या बर्नर आदि रसोई के दक्षिण-पूर्व (अग्नि) कोने में होना चाहिए और दोनों तरफ कुछ जगह छोड़नी चाहिए।
  • यदि दक्षिणमुखी घर में दक्षिण-पूर्व (अग्नि) की ओर रसोई होना संभव नहीं है, तो इसे उत्तर-पश्चिम (वायव्य) की ओर बनाया जा सकता है।
  • रसोई उत्तर-पूर्व (ईशान) की ओर नहीं होनी चाहिए। यह घर के मालिक को गरीब बनाता है। पुरुष संतान भी कम हो जाती है।
  • रसोई का स्लैब कभी भी दक्षिण और पश्चिम दीवार पर नहीं होना चाहिए।
  • हल्के वजन की सामग्री को पूर्व या उत्तर की ओर रखा जा सकता है।
  • डाइनिंग टेबल किचन में पश्चिम या उत्तर-पश्चिम (वायव्य) की ओर रख सकते हैं।
  • खाना बनाते समय घर की महिला का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए तथा उत्तर-पश्चिम (North West) की किचन में West की तरफ मुंह करना चाहिए।
  • खाना पकाने के लिए आवश्यक वस्तुएं, जैसे कच्चा माल, मसाले दक्षिण और पश्चिम क्षेत्र में रसोई घर में रखना चाहिए।
  • वाश-बेसिन / सिंक, नल, पानी का स्टोरेज उत्तर-पूर्व (ईशान) या उत्तर की ओर होना चाहिए।
  • किचन को काले या सफेद रंग में नहीं रंगना चाहिए। दीवारों और फर्श को गुलाबी, नारंगी, ग्रे या लाल रंग में रंगा जा सकता है।
  • रसोई का प्रवेश द्वार दक्षिण पश्चिम (South-West) दिशा की ओर नहीं होना चाहिए।
  • रसोई उत्तर दिशा की ओर नहीं होनी चाहिए। इससे दिवालियेपन, जमीन जायदाद की बिक्री और धन की हानि की संभावना हो सकती है।
  • फ्रिज, मिक्सर, ग्राइंडर आदि को उत्तर की दीवार (South Wall) नहीं होना चाहिए।
  • गैस, चूल्हा मुख्य द्वार की ओर मुंह करके नहीं रखना चाहिए।

घर का ब्रह्म-स्थान कहां पर होना चाहिए ?

किसी भी भवन के मध्य स्थान को ब्रह्म स्थान कहते हैं। इन दिनों बिल्डर्स, इंजीनियर्स और आर्किटेक्ट्स भी मकान बनाते समय इस बात पर ध्यान दे रहे हैं। प्राचीन काल में मध्य क्षेत्र में खुला स्थान (चौक) छोड़ा जाता था, जिसे ब्रह्म स्थान कहते हैं। इस स्थान का धार्मिक महत्व भी है। इसे हमेशा साफ रखा जाता है। इन दिनों मध्य स्थान में कोई खुला स्थान (चौक) छोड़े बिना पूरे क्षेत्र में निर्माण कार्य किया जाता है। जहाँ तक हो सके तो ब्रह्मस्थान में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए।

  • जहां तक संभव हो ब्रह्म-स्थान (मध्य क्षेत्र) पर निर्माण नहीं करना चाहिए। यदि भूखंड को लंबाई और चौड़ाई में (3*3 हिस्सों में) विभाजित किया जाता है, तो मध्य भाग ब्रह्म-स्थान बनाता है।
  • तहखाना (Underground Place) ब्रह्म-स्थान (मध्य क्षेत्र) में नहीं होना चाहिए।
  • यदि मध्य भाग पर निर्माण करना आवश्यक हो और पर्याप्त क्षेत्र उपलब्ध न होने के कारण वहाँ रसोई, शौचालय, शयन कक्ष या कूड़ा-कचरा कक्ष का निर्माण नहीं करना चाहिए।
  • मध्य भाग को लाल, नीले या काले रंग से नहीं रंगना चाहिए। सफेद रंग का प्रयोग करना चाहिए।
  • इस क्षेत्र में पानी की टंकी बोरवेल, सेप्टिक टैंक और स्विमिंग पूल नहीं होना चाहिए।
  • ब्रह्मस्थान में ओवरहेड वाटर टैंक (Overhead water tank ) नहीं होना चाहिए।
  • ब्रह्मस्थान में सीवर लाइन नहीं होनी चाहिए।
  • ब्रह्मस्थान में स्टेयर (सीढ़ियां) नहीं नहीं चाहिए।
  • ब्रह्मस्थान में कॉलम नहीं होना चाहिए।
  • ब्रह्मस्थान में दीवार नहीं होनी चाहिए।
  • ब्रह्मस्थान में बेडरुम नहीं होना चाहिए।
  • ब्रह्म स्थान को इत्र आदि से सुगंधित करना चाहिए।
  • ब्रह्म स्थान में मांगलिक ध्यान का संगीत बजना चाहिए।

घर में कहां, किस दिशा में और कैसा होना चाहिए पूजा घर?

पूजा घर का निर्माण करते समय बहुत सारी वास्तु की बातों का ध्यान रखना चाहिए। और इन वास्तु नियमों की अनदेखी नही करनी चाहिए अन्यथा आपके घर में परेशानियों देखने को मिल सकती हैं। घर में पूजाघर का निर्माण इस वजह से कराया जाता है। कि कई सारी चिंताएं और परेशानियाँ मत्था टेकने मात्रा से दूर हो जाती है। पूजा घर में बैठने से मन को शांति और ऊर्जा प्राप्त होती है। वास्तु शास्त्र में पूजा घर के निर्माण के संबंध कुछ नियम वर्णित है। जिनका पालन करने से हमारी साधना शीघ्र ही सफल हो जाती है। ईश्वर के आशीर्वाद के लिए घर में पूजाघर का निर्माण हर किसी को कराना चाहिए।

  • वास्तु के अनुसार मंदिर निर्माण के लिए घर का ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) दिशा सबसे उत्तम मानी जाती है। ईशान कोण में बैठकर पूजा-ध्यान करना सबसे ज्यादा लाभकारी होता है। इस स्थान में पूजा-पाठ करने से मन को शांति मिलती है और पूजा में अधिक मन भी लगता है।
  • घर या फ्लैट में मंदिर का निर्माण पूर्व से लेकर उत्तर के बीच मंदिर कहीं पर भी बना सकते हैं, परंतु घर में मंदिर स्थापित करने की सर्वोत्तम जगह ईशान कोण के अंदर शिखि, दिति, अदिति, जयंत पद है।
  • मंदिर हमेशा समचौरस होना चाहिए और मंदिर के चारों कोने हमेशा 90 डिग्री के होने चाहिए ।
  • वर्गाकार आकार वाले मंदिर वास्तु की दृष्टि से सर्वोत्तम मंदिर माने जाते हैं। यही इस आकार का मंदिर घर में बनाना संभव न हो तो आप आयताकार मंदिर भी बना सकते हैं।
  • मंदिर निर्माण से पूर्व इस बात का भी ध्यान देना चाहिए कि, मंदिर की लंबाई और चौड़ाई विषम संख्या में होना चाहिए।
  • घर के मंदिर में पूजा करते समय पूजा करने वाले का मुंह हमेशा पूर्व दिशा श्रेष्ठ होता है।
  • मंदिर का द्वार घर के मुख्य द्वार से हमेशा छोटा होना चाहिए।
  • मंदिर का द्वार बहुत ही सुन्दर और नक्काशी वाले बनाना चाहिए, क्योंकि वहां पर हमारे भगवान निवास करते हैं।
  • यदि किसी कारण से मंदिर का द्वार मंदिर मध्य में नहीं आ रहा है , तो हमें मंदिर का द्वार उच्च कोटि के नियम से रखना चाहिए। निम्न कोटि में मंदिर का द्वार शुभ नहीं होता है।
  • मंदिर का मुख्य द्वार हमेशा दो पल्लों का और लकड़ी का हो तो सर्वश्रेष्ठ होता है ।
  • मंदिर के द्वार के सामने किसी भी प्रकार का अवरोध, वेध या कट नहीं आना चाहिए।
  • घर के मंदिर का निर्माण कभी भी सीढ़ियों के नीचे नही करना चाहिए। ऐसे मंदिर निर्माण से व्यक्ति के जीवन में समस्याएं आती है और घर की आर्थिक तरक्की में रुकावट आ जाती है।
  • घर के मंदिर का निर्माण भूलकर भी घर के तलघर में नही करना चाहिए। ऐसे में पूजा के फल की प्राप्ति नहीं होती है।
  • घर के मंदिर या पूजा को सफेद या फिर क्रीम कलर से पेंट करना शुभ होता है।
  • घर के मंदिर का निर्माण स्वच्छ जगह पर होना चाहिए अर्थात मंदिर का निर्माण बाथरूम या टॉयलेट से जुड़ी दीवार पर नहीं होना चाहिए। मंदिर के ऊपर और नीची भी बाथरुम या टॉयलेट नहीं बनी होनी चाहिए।
  • घर के मंदिर में खंडित और टूटी मूर्तियाँ स्थापित नहीं करनी चाहिए क्योंकि खंडित मूर्तियों को स्थापित करने से दुर्भाग्य आता है और पूजा के फल की प्राप्ति नहीं होती है।
  • बेडरुम (शयन कक्ष) में मंदिर का निर्माण नहीं करना चाहिए । यदि विशेष परिस्थिति में मंदिर निर्माण करना पड़े तो उसके लिए वास्तु से संबंधित नियमों का पालन करना चाहिए।
  • प्राचीन मंदिर की कोई भी खंडित-मूर्ति व प्राचीन कलाकृति- पूजा घर या मंदिर में नही रखनी चाहिए।
  • स्वतः खुलने व बंद होने वाले तथा स्प्रिंग का प्रयोग पूजा घर के दरवाजे में नही करना चाहिए।
  • पूजा घर में भगवान के सामने अलमारी नहीं रखनी चाहिए।
  • घर के मंदिर (पूजास्थल) के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) को भारी न बनावें, उस स्थान पर चबूतरे का निर्माण नहीं करें, आसन या चटाई पर बैठकर पूजा करें।
  • घर के मंदिर (पूजास्थल) में यज्ञ मण्डप (अग्नि कुण्ड) का निर्माण अग्निकोण (दक्षिण-पूर्व) भाग में करना चाहिए।
  • मंदिर की दीवार से सटकर किसी भी देवी-देवता की मूर्ति न लगावें, एक-दो इंच जगह अवश्य छोड़ दें।
  • घर के पूजाघर (मंदिर) में हिंसक व अशुभ पशु-पक्षियों के चित्र, महाभारत के चित्र व वास्तु पुरुष के चित्र आदि नही लगाने चाहिए।
  • किसी मकान आदि का गिरा हुआ ईंट, चूना, पाषाण (पत्थर) और लकड़ी आदि मंदिर निर्माण में नही लगाना चाहिए।
  • पितरों की तस्वीर मंदिर की दक्षिण दीवार पर लगा सकते हैं, परंतु उसका आसन या प्लेटफार्म भगवान के प्लेटफार्म से नीचे होना चाहिए।
  • घर के मंदिर में गुम्बद नहीं होना चाहिए।
  • मंदिर में काले और नीले रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • मंदिर के नीचे सेप्टिक टैंक और पानी का टैंक नहीं होना चाहिए।
  • मंदिर के नीचे से सीवरेज की पाइप लाइन नहीं जानी चाहिए।
  • मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति के पीछे वाली दीवार में खिड़की नहीं होनी चाहिए।

घर का डाइनिंग रूम (भोजन कक्ष) कहां पर होना चाहिए ?

वास्तु अनुरूप निर्मित भोजन कक्ष से घर में अन्न और धन की बढ़ोत्तरी होती है। यदि आपके घर का डायनिंग रुप पूरी तरह से वास्तु के नियमों का पालन करता है, तो आपके घर-परिवार वालों की सेहत अच्छी होगी। इस बात में कोई दोराय नहीं हैं।

एक अच्छी वास्तु सुन्दर, स्वस्थ और सुखी परिवार को जन्म देती है, क्योंकि यदि आपके घर की सभी चीजें सही दिशा और सही स्थान पर रखी हो तो आपके घर में हमेशा सुख-समृद्धि का वास होता है।

  • डाइनिंग रूम का प्रवेश द्वार घर के मुख्य द्वार की ओर नहीं होना चाहिए तथा द्वार के सामने डायनिंग टेबल नहीं होनी चाहिए।
  • खाने की मेज को मोड़कर नहीं रखनी चाहिए और न ही दीवार से सटकर रखना चाहिए।
  • भोजन कक्ष पश्चिम की ओर रखना बेहतर है, लेकिन यह पूर्व या उत्तर की ओर भी हो सकता है।
  • इस कमरे के ईशान कोण में पानी का बर्तन रखना चाहिए।
  • वॉश बेसिन/वॉश स्टैंड पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए, लेकिन यह उत्तर-पूर्व (ईशान) या दक्षिण-पूर्व (अग्नि ) की ओर नहीं होना चाहिए।
  • अलमारी, Crockery, दक्षिण-पश्चिम दीवार (SouthWest Wall) पर तथा शीशा (Mirror) उत्तर पूर्व (North -East) दीवार पर होना चाहिए।

घर का बाथरुम (स्नान ग्रह) कहां पर होना चाहिए ?

आपके घर के बाथरूम का संबंध घर की धन-दौलत, सेहत और ख्याति से होता है और ऐसे में गलत दिशा में बना बाथरुम इन सभी को बुरी तरह से प्रभावित कर देता है। बाथरूम की दिशा, बाथरुम के दरवाजे, ड्रेनेज लाइन की कंडीशन वास्तु सम्मत होने पर घर-परिवार के लोगों की आर्थिक तरक्की में सुधार होता है। ऐसे में यदि आप घर का निर्माण करवा रहे है या फिर बाथरूम का रिनोवेट करवा रहे हैं, तो वास्तु की खास बातों का ध्यान देकर आप ने केवल घर के वास्तु दोष से बच सकते हैं। बल्कि अपनी आर्थिक स्थिति , सेहत और सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार भी कर सकते हैं।

वास्तु विद् -रविद्र दाधीच (को-फाउंडर) वास्तुआर्ट