Vastu Shastra Website
Contact for Vastu on Whatsapp

कैसे करें अंदर के दरवाजों का निर्माण ?

कैसे करें अंदर के दरवाजों का निर्माण ?

घर के मुख्यद्वार को सुख-समृद्धि, परिवार की उन्नति और विकास का प्रतीक माना जाता है। शरीर की पांच इंद्रियों में से जो मुख का संज्ञा दी गई है वही भवन के मुख्य द्वार की होती है। आपके घर के दरवाजों का सीधा संबंध उस भवन में निवास करने वाले लोगों के सामाजिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति से होता है। यदि आपके घर के अंदर के दरवाजे वास्तु के सिद्धांतों का पालन करते हुए निर्माण किए गये हैं। तो उन कमरों में रहने वाले व्यक्तियों पर अच्छा असर पड़ता है। यदि आपके घर के अंदर के दरवाजे वास्तु सम्मत हैं। तो घर के उन कमरों में रहने वाले व्यक्तियों के मांगलिक कार्यों में वृद्धि होती है और परिवार के अंदर आपसी समंजस्य भी बना रहता है। घर के द्वार को इस प्रकार भी समझ सकते है। कि जैसे शरीर में बीमारियां मुहं से प्रवेश करती है उसी प्रकार घर के अंदर समस्याओं का आगमन भी द्वार के माध्यम से ही होता है। इसलिए द्वार हमेशा वास्तु सम्मत ही होने चाहिए।

वास्तु शास्त्र में घर के अंदर द्वार स्थापना के निम्नलिखित नियम है जिसे उच्चकोटि या निम्नकोटि के नाम से जानते हैं। यह नियम घर के अंदर द्वार निर्माण में बहुत सहायक हैं। उच्चकोटि में द्वार का निर्माण करने से शुभ फलों की प्राप्त होती है। और उन कमरों में रहने वालों में धन, ऐश्वर्य, कीर्ति, प्रतिष्ठा और उन्नति में लाभ वृद्धि होती है। अतः उच्चकोटि में ही द्वार का निर्धारण करना चाहिए।



कैसे करें अंदर के दरवाजों का निर्माण ?
चित्र - उच्चकोटि व निम्नकोटि द्वार


  • ईशान कोण का जो भाग उत्तर में होता है वह उच्चकोटि की श्रेणी में आता है। इस उच्चकोटि में द्वार बनाना शुभ फलदायक होता है।
  • पूर्व का ईशान कोण भी उच्चकोटि में आता है। पूर्वी-ईशान में उच्चकोटि में द्वार बनाना शुभ और अच्छे परिणाम देने वाला होता है।
  • पूर्व दिशा का अग्निकोण निम्नकोटि की श्रेणी में गिना जाता है। इस दिशा में द्वार करने पर अच्छे फल नही प्राप्त होते हैं।
  • दक्षिण दिशा का अग्निकोण उच्चकोटि में आता है। दक्षिणी-आग्नेय में द्वार निर्माण करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • दक्षिण नैऋत्य कोण निम्मकोटि की श्रेणी में आता है। इसलिए यह दिशा शुभ नही मानी जाती है। दक्षिणी नैऋत्य में द्वार करने से आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। और उन कमरों में रहने वाली स्त्रियों को स्वास्थ्य से संबंधित दिक्कते आती रहती हैं।
  • पश्चिम दिशा का नैऋत्य कोण निम्नकोटि की श्रेणी में आता है। इस दिशा में द्वार निर्माण करना शुभदायी नही होता है। ऐसे कमरे पुरुषों के लिए ठीक नही होते हैं।
  • पश्चिम दिशा का वायव्य कोण उच्चकोटि के अंतर्गत आता है। यहाँ पर द्वार करना शुभ होता है।
  • उत्तर दिशा का वायव्य कोण नि्म्नकोटि में गिना जाता है। इसलिए यहां पर द्वार करना अशुभ होता है।
    • एक दरवाजे के ऊपर अगर दूसरा दरवाजे का निर्माण करना पड़े तो ऊपर की प्लोर वाले दरवाजे का साइज नीचे वाले दरवाजे की तुलना में थोडा सा छोटा बनाना चाहिए।
    • मुख्य दरवाजे के अपेक्षा अन्य दरवाजों को ज्यादा आकर्षक (सुन्दर) या अच्छा नही बनाना चाहिए। एवं मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्ह लगाना चाहिए।

द्वार के संबंध के वास्तु की खास बातें जो अलग-अलग द्वारों में देती है भिन्न-भिन्न परिणाम

उत्संग पूर्णबाहुश्च हीनबाहुस्तथापरः।
प्रत्यक्षाय इति प्रोक्तं प्रवेशानां चुतष्टयम।। (समरांगण सूत्रधार ch 48)


गृहस्य सम्मुखं यत्र द्वारं भवति वास्तुनः ।
उत्संग इतिस प्रोक्तःपूर्णबाहुः प्रदक्षिणः।।


  • उत्संग द्वार : घर के मुख्य द्वार की सीधी दिशा में बने दूसरे द्वार से घर में प्रवेश करते हैं। तो ऐसे द्वार उत्संग द्वार की श्रेणी में आते हैं। ऐसे द्वार का निर्माण जिन घरों में होता है। वहां पर सौभाग्य, संतान वृद्धि, धन-धान्य और कीर्ति-यश की प्राप्ति होती है।

  • उत्संग द्वार

  • हीनबाहुक द्वार : जिस घर में प्रवेश करने पर मुख्य द्वार से बाई ओर बने द्वार के माध्यम से घर में प्रवेश किया जाता है । ऐसे द्वार को हीनबाहुक द्वार कहते हैं। ऐसे द्वार वाले घरों में रहने वाले व्यक्ति गरीब, कम परिवार वाला और घरों की स्त्रियां परेशान रहती है।

  • हीनबाहुक द्वार

  • पूर्णबाहुक द्वार : यदि घर दायें होता है तो उसका प्रदक्षिण प्रवेश होने के कारण पूर्णबाहुक कहते हैं। अर्थात घर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते हुए दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते है और दाई ओर बने दूसरे दरवाजे से प्रवेश करते है। तो ऐसे द्वार पूर्णबाहुक द्वार कहलाते हैं। और इन घरों में निवास करने वालों को पुत्र, पौत्र,धन-धान्य और सुख इत्यादि प्राप्त होते हैं।

  • पूर्णबाहुक द्वार
  • प्रत्यक्षाप द्वार : किसी भी घर का मुख्य द्वार अगर रोड की विपरीत दिशा में हो तो शुभ नही होता है। ऐसे द्वार प्रत्यक्षाप द्वार की श्रेणी में आते है।

  • प्रत्यक्षाप द्वार

वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)