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होटल या रेस्टोरेंट में क्यों जरुरी है वास्तु

होटल या रेस्टोरेंट में क्यों जरुरी है वास्तु

होटल, रेस्टोरेंट (रेस्तरां) एक प्रकार का व्यवसायिक प्रतिष्ठान है। जो यात्रियों या फिर स्थानीय निवासियों को ठहरने और भोजन की उत्तम व्यवस्था प्रदान करता है। मुख्यरुप से होटल में मिलने वाली सुविधाओं में गेस्ट रुम, रुम सर्विस, फूड्स सर्विस और सुरक्षा व्यवस्था, संगीत इत्यादि सामिल होते हैं। समय के परिवर्तन के साथ अब होटलों का दायरा बढ़ा है जैसे अब अधिकांश लोग होटल से शादी-विवाह, बर्ड डे सिलेब्रेशन (जन्मोत्सव), मीटिंग, सभाएं इत्यादि कुछ होटलों से ही करने लगे हैं। ऐसे में होटल की वास्तु का अच्छा होना बहुत ही आवश्यक है।

कैसे हुई होटलों की शुरुआत

होटल की प्रथा शुरुआत युनानियों और रोमनों के द्वारा की गई और समय के परिवर्तन के साथ आज होटल समाज का एक अभिन्न अंग बन चुके हैं। होटल का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। या यूं कहें कि यह उसी इतिहास का हिस्सा है। अतिथि आतिथ्य की पेशकश करने वाली सुविधाएं बाइबिल के शुरुआती समय से ही साक्ष्य में रही हैं। यूनानियों ने आराम और स्वास्थ्य लाभ के लिए डिजाइन किए गए गांवों में थर्मल बाथ विकसित किए। बाद में, रोमनों ने सरकारी व्यवसाय पर यात्रियों के लिए आवास उपलब्ध कराने के लिए मकान बनाए। इंग्लैंड, स्विट्ज़रलैंड और मध्य पूर्व में थर्मल बाथ विकसित करने वाले पहले रोमन थे। मध्य युग में, मठ यात्रियों को शरण देने वाले पहले प्रतिष्ठान थे। शुरुआत में धर्माथ के लिए धर्मशाला स्थापित की गई और समय के साथ धर्मशालाओं के स्वरुप में परिवर्तन हुआ और वहीं से रेस्टोरेंट तथा होटलों की शुरुआत हुई। आज होटल इंडस्ट्री आय का एक साधन और सेवा भी है।

“आपके होटल और रेस्टोरेंट की पहचान होटल में मिलने वाले खाने के टेस्ट और वहां की अच्छी सुविधाओं से ही होती है और इन सब के पीछे होती है आपकी वास्तु ”

होटल एक प्रकार का व्याापार है और यदि इस व्यापार में आपने वास्तु के नियमों के अवहेलना की तो आपकी पूरी मेहनत पर पानी फिर सकता है और आपको इस व्यापार में हानि का सामना भी करता पड़ सकता है। इसलिए होटल निर्माण के पूर्व वास्तु नियमों को ध्यान में रखकर ही आगे की गतिविधियों को प्रारंभ करनी चाहिए।

होटल वास्तु के संबंध में वास्तु सलाहकार रविन्द्र जी बताते है। कि वर्तमान समय में आपको हर छोटे बड़े शहर में तीन सितारा या फिर पांच सितारो होटल आसानी से देखने को मिल जाते है। परंतु इन होटलों से अच्छी आय तभी प्राप्त हो सकती है जब यह पूरी तरह से वास्तु सम्मत हो। इन होटलों के भूमि चयन से लेकर आकार तक में वास्तु की विशेष भूमिका होती है। होटल के निर्माण के पूर्व ऊंचाई का भी विशेष ध्यान देना चाहिए। क्योकि होटल की ऊंचाई उत्तर-पूर्व दिशा की अपेक्षा दक्षिण-पश्चिम में अधिक होनी चाहिए।

क्या होटल के पूरे एरिया (प्रांगण) में वास्तु के नियम लागू होना चाहिए ?

वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का प्रयोग होटल के ज्यादा से ज्यादा हिस्से में होना चाहिए। वास्तु नियमों के अनुसार ही होटल में किचन का निर्माण होना चाहिए। होटल की खाद्य साम्रग्री कहां पर होनी चाहिए। होटल में कच्ची सब्जियाँ कहां पर रखनी चाहिए। होटल का तैयार खाना कहां पर रखा जाना चाहिए तथा ब्रह्म स्थान कैसा होना चाहिए। होटल की कौन सी दीवारों में कौन का कलर और मालिक के बैठने का स्थान और कैश काउंटर की जगह का निर्धारण भी वास्तु के मत के अनुसार ही होना चाहिए।

होटल की सजावट के बारे में वास्तु शास्त्र के अपने सिद्धांत हैं। जिसकी मदद से होटल को बहुत ही खूबसूरत कलर किए जा सकते हैं। रेस्टोरेंट के हर स्थान को महत्व दिया जाता है। इस सभी के साथ होटल में एक छोटा का पूजा घर या फिर छोटा सा मंदिर भी होना चाहिए। जिसमें रोज शाम-सुबह पूजा अर्चना होती रहे। पूजा घर होने से होटल के पूरे वातावरण में सकारात्मक माहौल बना रहता है और आय में वृद्धि भी होती रहती है।

कैसा होना चाहिए होटल का आकार ?

वास्तु के अनुसार वैसे तो आयताकार, वर्गाकार , गोलाकार, चौकोर, षट्कोणीय, अष्टकोणीय भूखण्डों का अच्छा माना जाता है। परंतु वर्तमान समय में भूखण्ड को आदर्श आकार में परिवर्तित भी किया जा सकता है। आदर्श आकार के भूखण्ड बनाने से पूर्व शेष भाग को खाली छोडकर उसमें पेड़-पौधे या फिर अन्य उपयोग में लिया जा सकता है।

होटल के लिए वास्तु की कौन-कौन सी नियमों को ध्यान में रखना चाहिए ?

वास्तु के अनुसार होटल के प्रवेश से लेकर आकार चयन में विशेष बातों का अपना अलग ही महत्व होता है।

  • भूखण्ड का चयन वास्तु सलाहकार से परामर्श करते ही करना चाहिए।
  • भूखण्ड का चयन वास्तु सलाहकार से परामर्श करते ही करना चाहिए।
  • होटल का प्रवेश द्वार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इसलिए प्रवेश द्वार सुन्दर और आकर्षक होना चाहिए। प्रवेश द्वार में किसी प्रकार का वेध नही होना चाहिए।
  • प्रवेश द्वार में आकर्षक फूल या फिर सुन्दर पौधे लगा सकते हैं। जो ग्राहको होटल की तरफ खींच सके और मुस्कुसाते हुए द्वारपाल भी प्रवेशद्वार में खड़े कर सकते हैं। पानी का फव्वारा या फिर अच्छी सुन्दर डिजाइन होटल के मुख्य द्वार पर रख सकते हैं।
  • होटल का क्षेत्रफल बड़ा होना चाहिए ताकि सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सभी जगह बना रहें। होटल की उत्तर पूर्व-पूर्व जगह को खुला छोड देनी चाहिए।
  • होटल की भूमि का ढलान उत्तर-पूर्व की दिशा की ओर होना चीहिए।
  • होटल में बैड के सोने की दिशा दक्षिण,पूर्व और पश्चिम की दीवार में कर सकते हैं।
  • वास्तु अनुसार होटल के कमरों के पलंग दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। जिससे गेस्ट के पैर उत्तर-पश्चिम में होेंगे।
  • होटल के कमरों में यदि बालकनी बनवाते हैं। तो यह उत्तरी-पूर्वी दिशा में होनी चाहिए।
  • होटल का स्वागत कक्ष सदैव फस्ट फ्लोर में होना चाहिए। यहीं पर आप छोटा सा कैफेटेरिया भी दे सकते हैं। होटल का फर्श हमेशा साफ-सुथरा होना चाहिए।
  • होटल का व्यापार एक ऐसा बिजनेस होता है। जिसमें आप जितना अधिक देखाते है उतनी ही ज्यादा ग्राहकों की संख्या आपकी ओर खिंची चली आती है। तो ऐसे में आपको होटल के आकर्षण पर ध्यान देना होगा। इसके लिए विशेष सजावट जैसे पानी की फव्वारे लगा सकते हैं। यह पानी के फव्वारे होटल की उत्तर-पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। यदि होटल में स्वींगपूल की व्यवस्था करना चाहते हैं। तो इसका निर्माण ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) दिशा में करना चाहिए।
  • होटल की किचन हमेशा दक्षिण-पूर्व (अग्निकोण) में करना चाहिए। क्योंकि यहां पर अग्नि तत्व महत्ता होती है और यहां पर रसोई रखने से भोजन स्वादिष्ट बनाता है और उसमें अग्नितत्व विद्यमान होता है।
  • होटल की एसी का स्थान दक्षिण पूर्व में करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अन्य विद्युत उपकरणों को भी अग्नि कोण में स्थापित कर सकते हैं।
  • होटल में वॉशबिसन उत्तर-पूर्व में लगाना चाहिए।
  • होटल के बाथरुम पश्चिम दिशा या फिर उत्तर-पश्चिम में बनाना चाहिए।
  • यदि होटल में कोई ढ़लान या जल स्त्रोत है। तो उत्तर-पूर्व की ओर शुभ होगा।
  • यदि होटल की दक्षिण-पश्चिम में कोई पहाड़ या फिर ऊँची बिल्डिंग हो तो वह शुभ होता है।
  • होटल की वेसमेंट में किचन नही होनी चाहिए। यदि किसी कारणवश करनी पड़े तो लाइट और वेंटिलेशन की प्रोपर व्यवस्था होनी चाहिए।
  • कचरा क्षेत्र (garbage area) उत्तर-पश्चिम-पश्चिम (NWW) में अच्छा होता है।
  • होटल का मुख्य द्वार 81 पादीय वास्तु के हिसाब से निर्धारित करना चाहिए।
  • होटल की लिफ्ट और सीढ़ियाँ ईशान कोण की तरफ नही होनी चाहिए।
  • होटल के ईशान कोण में टॉयलेट नही होना चाहिए।

वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)