घर का मंदिर वास्तु अनुरुप होने से कैसे पूरे परिवार को रखता है खुशहाल
भारतीय संस्कृति में मंदिर और पूजा दोनों का विशेष महत्व है। मंदिर में श्रद्धा और निष्ठा के साथ ईश्वर से की गई प्रार्थना का फल हमेशा अच्छा ही प्राप्त होता है और आपका घर परिवार हमेशा खुशहाली के साथ जीवन का आनंद लेता है। घर का मंदिर एक ऐसी पवित्र जगह होती है, जहां पर घर के सभी परिवार जन अपने ईष्ट देव (आराध्य देव) से प्रार्थना-अर्चना करते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की लिए उनसे आराधना करते हैं।
घर में बने मंदिर में नित्य प्रतिदिन वहां पर पूजा और ध्यान करने से व्यक्ति की सोच सकारात्मक होती है। घर में मंदिर होने से बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार आते हैं और उनकी दिन प्रतिदिन उन्नति होती है। घर के सदस्यों के अंदर भगवान के प्रति और अध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ती रहती है।
बटु बिस्वास अचल निज धरमा । तीरथराज समाज सुकरमा ।।
घर में बना मंदिर एक प्रकार का तीरथ ही है अर्थात आपका प्रबल विश्वास भी तीर्थ के सामान है। हमारे घर का जो विश्वास है वह एक प्रकार का मंदिर ही है।
घर की पूजा घर में प्रतिदिन ध्यान करने से मात्र से दैनिक समस्याओं का सामना करने में मदद मिलती है, ईश्वर के प्रति विश्वास बढ़ता है, और आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है। इसी आत्मविश्वास के द्वारा वह जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी समस्याओं का सामना करने में सक्षम होता है।
दूसरी बात ये कि यदि हम प्रतिदिन घर के पूजा घर में ध्यान लगाकर ईश्वर से अभीष्ट फल की मंगलकामना करते हैं, तो उसके लक्ष्य प्राप्ति में ईश्वर हमारी मदद करते है। चूंकि घर का मंदिर अपार सकारात्मक ऊर्जा का केन्द्र होता है और वहां पर बैठने और ध्यान लगाने से हमारे मन में अच्छे विचार आते है। ऐसे में हमें इस बात का भी पूर्ण अहसास हो जाता है। कि हम जो भी कर रहें है उन सभी कार्यों में ईश्वर की दृष्टि है और इसी धारणा के चलते हम गलत कार्यों को करने से भी बच जाते हैं। घर के मंदिर में बैठने से हम सद्आचरण करते हैं और कई सारी जीवन में आने वाली दैनिक परेशानियों से बच जाते हैं।
मंदिर में सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह क्यों होता है ?
वास्तु शास्त्र के अनुसार जब मंदिर का निर्माण किया जाता है, तो घर या फ्लैट की ऐसी जगह पर मंदिर का निर्माण होता है, जहां पर सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो। घर में मंदिर का निर्माण इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है, कि इस स्थान पर आने वाले व्यक्ति में बेहतर ऊर्जा का संचार हो सके। इस कारण से घर का पूजा घर (मंदिर) में सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा उपस्थित होती है।
ईश्वर का घर अर्थात मंदिर हमारे दुःखों और कष्टों हरने का एक आध्यात्मिक साधन होता है और हमारी जीवन में सुख और शांति का संचार करता है। ऐसे में हर किसी को इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए, कि मंदिर का निर्माण करते समय वास्तु के प्रमुख नियमों और सिद्धांतों का पालन किया जाये, तभी आपको मंदिर के वास्तविक सुख की अनुभूति होगी। मंदिर निर्माण में विशेष दिशा और विशेष स्थान का चयन करना अनिवार्य होता है। क्योंकि घर के आदर्श स्थान पर निर्मित मंदिर हमारे सुख और समृद्धि में निरंतर वृद्धि करता है। इसलिए इस बात का विशेष स्मरण रखें, कि आपके घर का मंदिर उचित स्थान पर हो।
घर के मंदिर निर्माण में वास्तु की कौन-कौन की बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
- वास्तु के अनुसार मंदिर निर्माण के लिए घर का ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) दिशा सबसे उत्तम मानी जाती है। ईशान कोण में बैठकर पूजा-ध्यान करना सबसे ज्यादा लाभकारी होता है। इस स्थान में पूजा-पाठ करने से मन को शांति मिलती है और पूजा में अधिक मन भी लगता है।
- घर या फ्लैट में मंदिर का निर्माण पूर्व से लेकर उत्तर के बीच मंदिर कहीं पर भी बना सकते हैं, परंतु घर में मंदिर स्थापित करने की सर्वोत्तम जगह ईशान कोण के अंदर शिखि, दिति, अदिति, जयंत पद है।
- मंदिर हमेशा समचौरस होना चाहिए और मंदिर के चारों कोने हमेशा 90 डिग्री के होने चाहिए ।
- वर्गाकार आकार वाले मंदिर वास्तु की दृष्टि से सर्वोत्तम मंदिर माने जाते हैं। यही इस आकार का मंदिर घर में बनाना संभव न हो तो आप आयताकार मंदिर भी बना सकते हैं।
- मंदिर निर्माण से पूर्व इस बात का भी ध्यान देना चाहिए कि, मंदिर की लंबाई और चौड़ाई विषम संख्या में होना चाहिए।
- घर के मंदिर में पूजा करते समय पूजा करने वाले का मुंह हमेशा पूर्व दिशा श्रेष्ठ होता है।
- मंदिर का द्वार घर के मुख्य द्वार से हमेशा छोटा होना चाहिए।
- मंदिर का द्वार बहुत ही सुन्दर और नक्काशी वाले बनाना चाहिए, क्योंकि वहां पर हमारे भगवान निवास करते हैं।
- यदि किसी कारण से मंदिर का द्वार मंदिर मध्य में नहीं आ रहा है , तो हमें मंदिर का द्वार उच्च कोटि के नियम से रखना चाहिए। निम्न कोटि में मंदिर का द्वार शुभ नहीं होता है।
- मंदिर का मुख्य द्वार हमेशा दो पल्लों का और लकड़ी का हो तो सर्वश्रेष्ठ होता है ।
- मंदिर के द्वार के सामने किसी भी प्रकार का अवरोध, वेध या कट नहीं आना चाहिए।
- घर के मंदिर का निर्माण कभी भी सीढ़ियों के नीचे नही करना चाहिए। ऐसे मंदिर निर्माण से व्यक्ति के जीवन में समस्याएं आती है और घर की आर्थिक तरक्की में रुकावट आ जाती है।
- घर के मंदिर का निर्माण भूलकर भी घर के तलघर में नही करना चाहिए। ऐसे में पूजा के फल की प्राप्ति नहीं होती है।
- घर के मंदिर या पूजा को सफेद या फिर क्रीम कलर से पेंट करना शुभ होता है।
- घर के मंदिर का निर्माण स्वच्छ जगह पर होना चाहिए अर्थात मंदिर का निर्माण बाथरूम या टॉयलेट से जुड़ी दीवार पर नहीं होना चाहिए। मंदिर के ऊपर और नीची भी बाथरुम या टॉयलेट नहीं बनी होनी चाहिए।
- घर के मंदिर में खंडित और टूटी मूर्तियाँ स्थापित नहीं करनी चाहिए क्योंकि खंडित मूर्तियों को स्थापित करने से दुर्भाग्य आता है और पूजा के फल की प्राप्ति नहीं होती है।
- बेडरुम (शयन कक्ष) में मंदिर का निर्माण नहीं करना चाहिए । यदि विशेष परिस्थिति में मंदिर निर्माण करना पड़े तो उसके लिए वास्तु से संबंधित नियमों का पालन करना चाहिए।
- प्राचीन मंदिर की कोई भी खंडित-मूर्ति व प्राचीन कलाकृति- पूजा घर या मंदिर में नही रखनी चाहिए।
- स्वतः खुलने व बंद होने वाले तथा स्प्रिंग का प्रयोग पूजा घर के दरवाजे में नही करना चाहिए।
- पूजा घर में भगवान के सामने अलमारी नहीं रखनी चाहिए।
- घर के मंदिर (पूजास्थल) के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) को भारी न बनावें, उस स्थान पर चबूतरे का निर्माण नहीं करें, आसन या चटाई पर बैठकर पूजा करें।
- घर के मंदिर (पूजास्थल) में यज्ञ मण्डप (अग्नि कुण्ड) का निर्माण अग्निकोण (दक्षिण-पूर्व) भाग में करना चाहिए।
- मंदिर की दीवार से सटकर किसी भी देवी-देवता की मूर्ति न लगावें, एक-दो इंच जगह अवश्य छोड़ दें।
- घर के पूजाघर (मंदिर) में हिंसक व अशुभ पशु-पक्षियों के चित्र, महाभारत के चित्र व वास्तु पुरुष के चित्र आदि नही लगाने चाहिए।
- किसी मकान आदि का गिरा हुआ ईंट, चूना, पाषाण (पत्थर) और लकड़ी आदि मंदिर निर्माण में नही लगाना चाहिए।
- पितरों की तस्वीर मंदिर की दक्षिण दीवार पर लगा सकते हैं, परंतु उसका आसन या प्लेटफार्म भगवान के प्लेटफार्म से नीचे होना चाहिए।
- घर के मंदिर में गुम्बद नहीं होना चाहिए।
- मंदिर में काले और नीले रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- मंदिर के नीचे सेप्टिक टैंक और पानी का टैंक नहीं होना चाहिए।
- मंदिर के नीचे से सीवरेज की पाइप लाइन नहीं जानी चाहिए।
- मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति के पीछे वाली दीवार में खिड़की नहीं होनी चाहिए।
वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)