कर्म ही धर्म है। काम एक व्यक्ति के जीवन का एक अविभाज्य हिस्सा है। यह न सिर्फ जीवन की जरूरतों को पूरा करता है बल्कि लोगों को एक पहचान भी देता है। बढ़ते वैश्वीकरण और व्यावसायीकरण से फैक्ट्रियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। देश में उत्पादन इकाइयों की संख्या भी बढ़ी है। बड़ी संख्या में लोगों को मूल आजीविका कमाने का अवसर मिलता है। हालाँकि, इन बढ़ते अवसरों के साथ कई चुनौतियाँ भी आती हैं। जिन्हें हम वास्तु द्वारा ठीक करने का प्रयास करते है और सफलता भी प्राप्त करते हैं।
वर्तमान में कई उत्पादन फैक्ट्रियां हैं जो समय के साथ सुचारू रूप से चल रही हैं और विस्तार कर रही हैं। परंतु कुछ ऐसी भी फैक्ट्रिया देखने को मिलती है, जो केवल घाटे का सौदा रही हैं। कई कारखानों के शेड को कम उत्पादकता दर, खराब उत्पादन गुणवत्ता, मशीनरी खराब होने और कई अन्य आपदाओं का भी सामना करना पड़ता है। इन सबके पीछे खराब वास्तु ही जिम्मेदार होता है। औद्योगिक वास्तु का संचालन करने वाले वास्तु विशेषज्ञ फैक्ट्री के खराब वास्तु के दुष्परिणाम मानते हैं।
वास्तु के अनुसार फैक्ट्री के वर्क स्टेशन की व्यवस्था कुछ इस प्रकार से करनी चाहिए। कि अध्यधिक लेवर व वर्कर का मुंह उत्तर या पूर्व की दिशा में हो। क्योंकि इन दोनों दिशाओं से ही प्रथ्वी की प्राण ऊर्जा का संचार उसके उत्तरी ध्रुव के द्वारा होता है। इसलिए उत्तर व पूर्व में मुख में कार्यरत मजदूर वर्ग अधिक समय तक थकावट का अहसास नही करता है और निरंतर अपने काम में लगा रहता है।
वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)