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कैसे हुई वास्तु पुरुष की उत्पत्ति जानें

कैसे हुई वास्तु पुरुष की उत्प्ति जानें

वास्तु पुरुष की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक अत्यन्त मनोरंजक कथा है, जिससे ज्ञात होता है कि वास्तुशास्त्र के अनुसार गृह निर्माण एवं वास्तु पुरुष की पूजा विधि-विधान से करना क्यों आवश्यक है। वास्तु पुरुष प्रत्येक स्थान में चाहे वह स्थान छोटा हो या बड़ा विद्यमान रहते हैं। उनका शरीर निश्चित और विलक्षण युक्त है, उनका सिर नीचे लटकते हुए सम्पूर्ण आयाम में व्याप्त होकर रहता है। मत्स्य पुराण में वास्तु पुरुष के प्रकट होने का वर्णन मिलता है । प्राचीन समय में अविनाशी भगवान शिव ने अन्धक नामक एक राक्षस युद्ध करके उसे मार डाला। युद्ध करते वक्त भगवान शिव बहुत थक गये सेवक से और उनके शरीर से पसीना बहने लगा। उन पसीने की बूंदों से एक का जन्म हुआ, जिसका शरीर दिखने में बहुत क्रूर था। वह सेवक बहुत भूखा था इसलिये वह मर कर पड़े हुए अन्धक के शरीर से बहते हुए रक्त का पान करने लगा, परन्तु उसे तृप्ति नहीं मिली। वह अपनी भूख सहन नहीं कर सका और तीनों लोकों को खा डालने के लिए भगवान शिव की तपस्या करने लगा। अविनाशी भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न हो गये। उस भक्त ने शिवजी से प्रार्थना की कि हे प्रभो ! कृपया मुझे तीनों लोकों को खाने की आज्ञा दीजिये । भगवान शिव ने कहा तथास्तु ! फिर क्या कहना ? उसने तो तीनों ही लोकों को अपने आधीन कर लिया और भूलोक को खाने के लिए उस पर टूट पड़ा । उस समय समस्त देवता गण, प्राणी, राक्षस बहुत घबराये और ब्रह्माजी से सहायता की याचना की। ब्रह्माजी ने उसे पेट के बल गिराने को कहा और चारों तरफ से घेरकर उसको गिरा दिया गया। उस सेवक को 45 देवताओं ने गिराया। उनमें से 32 देवताओं ने बाहर से और 13 देवताओं ने भीतर से पकड़ लिया। उन 32 देवताओं, जिन्होंने उसे बाहर से पकड़ा, उनके नाम इस प्रकार से हैं— 1. ईश, 2. पर्जन्य, 3. जयन्त, 4. इन्द्र, 5. सूर्य, 6. सत्य, 7. भृश, 8. आकाश, 9. वायु, 10. पूषा, 11. वितथ, 12. वृहत्क्षत, 13. यम, 14. गन्धर्व, 15. भृङ्गराज, 16. मृग, 17. पितृ, 18. दौवारिक, 19. सुग्रीव, 20. पुष्पदंत, 21. वरुण, 22. असुर, 23. शेष, 24. पापयक्ष्मा, 25. रोग, 26. अहि, 27. मुख्य, 28. भल्लाट, 29. सोम, 30. सर्प 31. अदिति, 32. दिति ।

उपरोक्त 32 देव वास्तु की सीमा से बाहर हैं जबकि निम्नांकित 13 देवता

सीमा के अन्दर हैं-1. आप 2. सविता 3. इन्द्रजय, 4. शेष 5. मरीची, 6. सावित्री 7. विवस्वान 8. विष्णु 9 मित्र 10. रुद्र 11. पृथ्वीधर 12. आपवत्स और 13. ब्रह्मा । यह सभी देवता उस सेवक के विभिन्न अंगों पर निम्नलिखित प्रकार से आक्रमण करके बैठे गए। ईश (अग्नि) सिर, आप-मुखः पृथ्वीधर और अर्यमा

छाती पर; आपवत्स हृदय पर दिति और इन्द्र भुजाओं पर सोम और सूर्य दाहिने हाथ पर रुद्र और राजयक्ष्म बायें हाथ पर; सावित्री और सविता दाहिने हाथ पर विवस्वान और मित्र पेट पर पूषा और अयंगा कलाई पर असुर और शेष बायीं ओर वितथ और वृहत्क्षत दाहिनी ओर; यम और वरुण जांघ पर गन्धर्व और पुष्पदंत घुटनों पर सुग्रीव और मृग पैरों के निचले भाग पर; दोवारिका और मृग पैरों पर जय और सद्य पांवों के ऊपर के बालों पर; ब्रह्मा हृदय पर ।

इस प्रकार से बंधित वह सेवक उसी जगह पर ऐसे ही पड़ा रहा। बंदी बनकर पड़े हुये सेवक ने देवों से कहा हे देवतागणों ! आप सभी ने पकड़कर ने मुझे बांध लिया है। मैं इस प्रकार अपना सिर लटका कर कब तक बंदी रूप में रहूँ ? मैं क्या खाऊँ ?

यह सुनकर देवताओं ने कहा आज भाद्रपद सुदि तृतीया शनिवार है, और विशाखा नक्षत्र है। इसलिये अब जिस प्रकार तुम भूमि पर पड़े हुए हो उसी प्रकार भाद्रपद से लेकर तीन महीनों में एक बार दिशाओं को बदलते हुए अर्थात् भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मासों में पूर्व की दिशा में सिर और पश्चिम की ओर पाँव, मार्गशीर्ष पौष और माघ मासों में दक्षिण की ओर सिर एवं पश्चिम की ओर देखते हुए पाँवों को उत्तर की ओर रखना। फाल्गुन, चैत्र और वैशाख मासों में पश्चिम की ओर सिर एवं पूर्व की ओर पैर रखकर उत्तर की ओर देखना।

ज्येष्ठ, आषाढ़ और श्रावण मासों में उत्तर की ओर सिर एवं दक्षिण की ओर पैर तथा दृष्टि पूर्व की ओर रखकर लेटना।वास्तु टिप्स -

  • किसी भी दिशा की ओर घूमो परन्तु बायीं ओर पड़े रहो ।
  • तुम वास्तु पुरुष नाम से विख्यात रहोगे। तुम्हारे अनुकूल वापी, कूप, तड़ाग, मंदिर और गृह निर्माण नहीं करने वाले और तुम्हारी पूजा किये बिना तथा बलि और होम (हवन) किये बिना शिलान्यास, गृह प्रवेश आदि कर्म नहीं करने वालों को भी मनमाने ढंग से पीड़ित करते रहो। फिर वास्तु पुरुष ने पुनः प्रश्न किया कि मैं अपनी भूख को शांत करने के लिए क्या करूं। तब देवताओं ने कहा कि जो मनुष्य तुम्हारे अनुकूल निर्माण नहीं करे उन्हीं का भक्षण करो ।

    वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)