दक्षिण मुखी द्वार निर्माण में क्या-क्या कठिनाईयां आती हैं ?
सृष्टि के हर कण में ईश्वर विराजमान है। सब कुछ ईश्वर का ही निर्माण किया हुआ है। संपूर्ण दिशाओं की उत्पत्ति ईश्वर की ही देन है। हर दिशा का अपना अलग-अलग गुण-धर्म होता है। उसी आधार पर दक्षिण दिशा के भी अपने कुछ खास गुणधर्म होते हैं। जिसमें कुछ गुणधर्म शुभ होते हैं और कुछ अशुभ होते हैं।
ब्रह्मांड की चार प्रमुख दिशाएं हैं। पूर्व,पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। इन चार दिशाओं के अतिरिक्त 4 विदिशायें और भी होती है। इसमें से दक्षिण दिशा को आमतौर पर लोग अशुभ मानते हैं। दक्षिण मुखी मकान, दुकान, कारखाने, फैक्ट्री इत्यादि के खरीदने से बचते हैं। और इन्हें खरीदने से लोगों को डर लगता है। क्योंकि दक्षिण दिशा का डर लोगों के अंदर भर चुका है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह दिशा बहुत ही ज्यादा अशुभ होती है।
दक्षिण दिशा में द्वार निर्माण न करने के वास्तविक कारण क्या है ?
दक्षिणमुखी में निर्माण न करने के पीछे कुछ आर्किटेक्चर और तकनीकी नियम है, जो दक्षिण मुखी भूखण्ड या प्लॉट के लिए वास्तु के हिसाब से उपयुक्त नही है। इस कारण से इस दिशा में निर्माण करने में कठिनाई आती हैं।
- दक्षिणमुखी भूखण्ड में सेटबेक के नियम के हिसाब से 2 विकल्प होते है। अग्निकोण से मुख्य द्वार या फिर दक्षिण-पश्चिम से मुख्यद्वार निर्माण। वास्तु के दृष्टि से दक्षिण-पश्चिम द्वार उचित नही होता है। यह द्वार सबसे गलत होता है। और यहां से मुख्य द्वार होने से घर का नक्शा भी सही वास्तु नियमों के अनुरुप नही होता है।
- विज्ञानिक और वास्तु की दृष्टि से देखा जाये तो दक्षिणमुखी घरों में अन्य घरों की अपेक्षा सबसे ज्यादा अल्ट्रावायलेट किरणों का प्रभाव रहता है। जोकि घर के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिहाज से ज्यादा अच्छा नही होता है।
- दक्षिण मुखी वाले मकानों में सूर्य का प्रकाश अधिक देर तक ठहरता है। जिसके कारण घर का मुख्य दक्षिणी द्वार अधिक तपता (गर्म) रहता है। ऐसे में दक्षिण मुखी द्वार गर्मप्रदेश के लिहाज से हितकर नही होते हैं। क्योंकि ऐसे घरों में गर्मी का अधिक प्रभाव रहता है।
- दक्षिणमुखी भूखण्ड में निर्माण न करने की वजह यह भी होती है। कि ऐसे मकान का पूरा पानी मुख्यद्वार पर निकलना होता है। इस कारण से स्थिति ऐसी बन जाती है कि मकान का ढाल अधिकांशतः दक्षिण दिशा की ओर ही हो जाता है। जोकि वास्तु संगत नही है।
- दक्षिणमुखी में आगे की तरफ बड़ी बालकोनी या परगोला या खुला एरिया या बरामदा शुभ नही होता है। ऐसे में ऐलीवेशन करने में समस्या आती है।
- दक्षिणमुखी में बोरवेल, सेप्टिक टैंक, या अंडरग्राउण्ड पानी का टैंक आगे बनाया जाता है। ताकि भविष्य में आसानी से मैटेंन रखरखाव किया जा सके। परंतु यह वास्तु के हिसाब से अच्छा नही होता है।
- वास्तु के हिसाब से मकान उत्तर का एरिया दक्षिणी की तुलना में ज्यादा खुला व खाली होना चाहिए और पश्चिम से ज्यादा पूर्व खुला वा खाली होना चाहिए। जो यह संभव नही हो पाता है।
- हमेशा मकान का दक्षिण और पश्चिम ऊँचा व भारी होना चाहिए तथा उत्तर और पूर्व खाली व हल्का (भारहीन) होना चाहिए।
- वर्षा जल संरक्षण (Rain water harvesting) भी दक्षिणमुखी में आगे की तरफ नही बना सकते हैं। क्योंकि अग्निकोण में अग्नि तत्व में पानी नही आ सकता है, और पृथ्वी तत्व में गड्डा या अंडर ग्राउंड पानी का स्त्रोत ठीक नही होता है। और मकान के पीछे बनाने में परेशानी आती है।
- दक्षिणमुखी में पीछे की ओर यदि ऊँची बिल्डिंग है तो वह शुभ नही हैं।
- दक्षिणमुखी में यदि पार्क सामने है तो यह वास्तु के अनुसार शुभ नही होता है। क्योंकि दक्षिण खुला शुभ नही माना जाता है।
- दक्षिणमुखी मकान के आगे गहरी नाली (drain) भी शुभ नही होती है। क्योंकि दक्षिण में गड्डा (नाली) अशुभ माना जाता है।
- दक्षिणमुखी मकान के आगे गहरी नाली (drain) भी शुभ नही होती है। क्योंकि दक्षिण में गड्डा (नाली) अशुभ माना जाता है।
- दक्षिण मुखी के 9 भाग करके उसमें से एक भाग ही शुभ होता है। जिसे वृहत्थत कहते हैं। बाकी के शुभ नही होते हैं।
- दक्षिणदिशा मे घर के मुख्य द्वार करने के विकल्प बहुत कम होते हैं। ऐसे में नक्शा सेट करने में परेशानी होती है।
- जब कोई व्यक्ति मकान या कोठी का निर्माण करता है। तो वह चाहता है, कि मकान में प्रवेश करते ही ड्राइंग रुम आये। इसके बाद लिविंग रुम, किचन आये और अंत में जाकर बेडरुम आये। परंतु दक्षिणमुखी मकान में मास्टरबेड रुम आगे आता है। और फ्रंट में किचन आती है। और ड्राइंगरुम पीछे की ओर चला जाता है। सामान्यतः छोटे प्लॉटों में यह संभव नही हो पाता है। ऐसे में घर का मालिक नही चाहता है। कि वह अपने गेस्ट को पूरे घर से गुजरता हुआ अंत में बने ड्राइंग रुम में लेकर जाए। इन कारणों की वजह से लोग दक्षिणमुखी मकान को त्याग देते हैं।
- आदमी चाहता है। कि उसका मकान बडा दिखे। फस्ट फ्लोर (प्रथम मंजिल) में कमरों का निर्माण पीछे की ओर हो जिससे मकान का पूरा डिप्थ (Depth) दिखे और मकान दिखने में भी सुन्दर दिखे। तो ऐसे में जब हम दक्षिण मुखी में निर्माण करते हैं। और निर्माण को पीछे की ओर लेकर जाते हैं। तो ऐसे में मकान का उत्तर ऊँचा हो जाता है। तो वह वास्तु की दृष्टि से उचित नही है तथा एलीवेशन में भी आगे मकान सीधा (flat) ही दिखाई देता है।
दक्षिण दिशा में द्वार न करने के पीछे क्या-क्या भ्रांतियां हैं ?
दक्षिण दिशा को लेकर आज भी लोगों के मन में बहुत सारे भ्रम है। जिसके चलते भी लोग दक्षिणमुखी भूखण्डों में निर्माण करने से बचते हैं। दक्षिण दिशा को लेकर कुछ भ्रम हैं।
दक्षिण दिशा यम देव और पितरों को समर्पित है। अर्थात इस दिशा के अधिकारी देव यम हैं। यहां से लोगों लोगों के मन में इस बात का भ्रम पैदा होता है। कि यम देव तो मृत्यु के देवता हैं। इसलिए यह दिशा निवास करने के लिए उचित (आदर्श) नही है। मृत्यु के भय से भयभीत होकर लोग अक्सर इस दिशा का त्याग कर देते हैं।
दक्षिण दिशा को लेकर समाज में एक और भ्रम (miths) है। कि मृत्यु भोज के समय लोग दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करते हैं। इसलिए भी लोग दक्षिण मुखी भूखण्ड या मकान लेने या उसमें निवास करने से बचते है।
दक्षिण दिशा क्यों उत्तम मानी जाती है ?
दक्षिण दिशा के संबंध में वास्तु शास्त्र के ग्रंथ कहते हैं। कि यह दिशा शक्ति, साहस और अपार धन प्रदान करने वाली दिशा होती है। क्योंकि ध्यान से देखे तो सबसे ज्यादा धन व पराक्रम दक्षिण दिशा में ही है।
दक्षिणमुखी में निवास करने वाले लोग थोड़े समय के पश्चात उन्नति करते हैं। ऐसा देखा गया है, कि प्रायः वही लोग सबसे आगे उन्नति करते हैं।
घर का मुखिया यदि घर की दक्षिण दिशा में निवास करता है। तो वह उसके लिए बहुत अच्छा होता है। क्योंकि दक्षिण दिशा घर के मुखिया को साहस प्रदान करती है। और उनको नियंत्रित करके आय के नये-नये स्त्रोत खोलती है। अब ऐसे में यदि परिवार का मुखिया घर के दक्षिण में निवास करेगा तो पूरा परिवार घर के मुखिया के नियंत्रण में रहेगा। जिससे जीवन अधिक बेहतर होगा। वास्तु के अनुसार मंत्रशाक्ति और साधना के लिए दक्षिण दिशा विशेष फलदायी होती है।
- व्यापारी वर्ग के लिए दक्षिण दिशा शुभ होती है। इस दिशा में बनी व्यवसायिक इमारतें बहुत अच्छी तरक्की करती हैं।
- भारत के कई शहरों में ऐसी रोड (सड़के) हैं, जो पॉर्श लोकेशन में आती हैं। जहां एक तरफ तो उत्तरमुखी और दूसरी ओर दक्षिणमुखी मकान, दुकान, फैक्ट्री, ऑफिस , कारखाने बने होते हैं। जिसमें देखने को मिलता है, उत्तर वालों की अपेक्षा दक्षिणमुखी द्वार वर्ग अधिक सफल है,
- दक्षिण की दिशा कुछ समयान्तराल के उपरांत तरक्की करने वाली दिशा होती है। किसी भी देश का , गांव का , कॉलोनी का सबसे लेट डेवलपमेंट होगा। परंतु सबसे आगे दक्षिण ही होगा। आप देखें कि दक्षिण भारत, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण मुंबई, दक्षिणी दिल्ली, दक्षिणी कोलकत्ता सब जगह अंत में विकास हुआ है। परंतु सबसे आगे दक्षिणी क्षेत्र ही है।
- दक्षिणीमुखी मकान एक दो पीढ़ियों के लिए तो लाभकारी होते हैं। परंतु उसके बाद वाली तीसरी पीढ़ी के लिए लाभ की संभावना नही होती है। इसलिए तीसरी पीढ़ी वालों को लगातार दक्षिणीमुखी मकान में निवास करना शुभफलदायी नही होता है।
- दक्षिणमुखी फ्लैट (अपार्टमेंट) का वास्तु प्रायः ठीक होता है। परंतु फ्लैट का दरवाजा दक्षिणमुखी न हो और ईशान कोण में वास्तु दोष नही होने चाहिए।
दक्षिण दिशा किसके लिए सबसे ज्यादा शुभ है ?
अब ऐसे में निष्कर्ष निकलता है। कि क्या सभी के लिए दक्षिण दिशा अशुभ होती है? तो ऐसा बिल्कुल भी नही है। क्योंकि हर दिशा न तो हर किसी के लिए अच्छी होती है और न ही हर किसी के लिए खराब होती है।
यह उनकी कुण्डली के आधार ज्ञात होता है। कि किस व्यक्ति के लिए कौन सी दिशा फलीभूत होगी। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा के संदर्भ में वर्णन किया गया है। कि इस दिशा का संबंध कुण्डली के मंगल ग्रह से होता है। क्योंकि मंगल ग्रह अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए दक्षिण दिशा अग्नि प्रधान दिशा होती है। ऐसे में जिन लोगों की जन्म कुण्डली में मंगल शुभ परिणाम देने वाला होता है। उन लोगों के लिए दक्षिण दिशा अच्छे परिणाम प्रदान करने वाली दिशा होती है। जिनघरों का द्वार दक्षिण-पश्चिम होता है और उनकी कुण्डली में दक्षिण से लाभ मिलता है तो ऐसे मकान के ग्रह स्वामी 8 वर्ष, 12 वर्ष और 24 वर्ष तक तो इनता धन अर्जित करते है, जिसकी कोई सीमा नही होती है। परंतु इसके पश्चात दक्षिण-पश्चिमी मकान को त्यागा नही गया तो उसके आगे की पीढ़ियाँ समस्याओं से ग्रसित रहती हैं।
वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)