दक्षिण दिशा क्या अशुभ होती है ?
सृष्टि के हर कण में ईश्वर विराजमान है। और सब कुछ ईश्वर का ही निर्माण किया हुआ है।
!! "ईशा वास्यम मिदं सर्वम यत किंचियाम जगत्याम जगत।" !!
इसके बाद भी ग्रंथों की धारणा है। कि यह शुभ है और यह अशुभ है। अशुभ दिशाओं की श्रेणी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह आती है। कि वह है दक्षिण दिशा।
ब्रह्मांड की चार प्रमुख दिशाएं हैं। पूर्व,पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। इसमें से दक्षिण दिशा को आमतौर पर लोग अशुभ मानते हैं। दक्षिण दिशा में बने मकान, दुकान, कारखाने, फैक्ट्री इत्यादि के खरीदने से बचते हैं। और इन्हें खरीदने से लोगों को डर लगता है। क्योंकि दक्षिण दिशा का डर लोगों के अंदर भर चुका है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह दिशा बहुत ही ज्यादा अशुभ होती है।
दक्षिण दिशा का महत्व बताते हुए रविन्द्र दाधीच जी कहते हैं। कि वास्तु के प्रमुख ग्रंथों में 10 दिशाओं का वर्णन मिलता है। जिसमें से 4 दिशाएं प्रधान होती है।
- पूर्व दिशा
- पश्चिम दिशा
- उत्तर दिशा
- दक्षिण दिशा
इन चार दिशाओं के अतिरिक्त 4 विदिशायें और भी होती है।
वास्तु ग्रंथों में दक्षिण दिशा यम देव और पितरों को समर्पित है। अर्थात इस दिशा का आधिपत्य (अधिकार) यम देवता का होता है। अब लोगों के मन में इस बात का घर कर जाता है। कि यमराज मृत्यु के देवता हैं। इसलिए यह दिशा रहने के हिसाब से उचित नही हैं। क्योकि मनुष्य का सबसे बड़ा भय मृत्यु ही होती है।
ज्योतिश शास्त्र और दक्षिण दिशा का संबंध
ज्योतिष शास्त्र में दक्षिण दिशा का संबंध मंगल ग्रह के साथ होता है। मंगल ग्रह अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए दक्षिण दिशा अग्नि प्रधान दिशा होती है। कुण्डली का मंगल ग्रह दक्षिण दिशा का नियंत्रित करता है। दक्षिण दिशा को लेकर समाज में एक और भ्रम (मिथ) है। कि मृत्यु भोज के समय लोग दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन ग्राहण करत है। इसके बाद दूसरा यह कि मृत्यु के उपरांत शव (अर्थी-मरे हुए व्यक्ति का मुंह) का मुंह दक्षिण दिशा की ओर रखते हैं। इसलिए भी लोग दक्षिण की ओर मकान व भूखण्ड लेने से बचते हैं।
अब ऐसे में निष्कर्ष निकलता है। कि क्या सबके लिए दक्षिण दिशा अशुभ होती है। तो ऐसा बिल्कुल भी नही है । क्योंकि हर दिशा न तो हर किसी हर किसी के लिए अच्छी होती है और न ही हर किसी के लिए खराब होती है।
अब जानते हैं दक्षिण दिशा का महत्व
दक्षिण दिशा के संबंध में वास्तु के ग्रंथ कहते हैं। कि यह दिशा शक्ति, साहस और अपार धन देने वाली होती है। क्योंकि यदि भारत के मानचित्र को देखें तो सबसे ज्यादा धन दक्षिण में ही है। दक्षिण मुखी घरों में निवास करने वाले लोग थोडी देर से उन्नति करते हैं। परंतु सबसे आगे वही उन्नति करते हैं।
दक्षिण भारत के मंदिरों की बात की जाएं तो उत्तर भारत के मंंदिरों से संपन्नता में वो कहीं अग्रेणी है। दक्षिण दिशा आर्थिक समपन्नता ( Financial Groth) की दिशा है। क्योंकि धार्मिक दिशा संबंध भी दक्षिण दिशा से होता है।
वास्तु के मतानुसार मंत्रशाक्ति और साधना के लिए ये दिशा विशेष फलदायी होती है। क्योंकि तंत्रमंत्र की कुछ ऐसी साधनाओं के लिए विशेष दिशा की आवश्यकता होती है। जिसका प्रयोग करने के लिए दक्षिण दिशा का चयन किया जाता है।
घर का मुखिया यदि घर की दक्षिण दिशा में रहता है। तो वह इसके लिए बहुत सही होता है। क्योंकि दक्षिण दिशा घर के मुखियो को साहस प्रदान करती है और उनको नियंत्रित भी करके आय के नये नये स्त्रोत खोलती है। ऐसे में यदि घर का मुखिया दक्षिण में रहेगा और तो उसके पूरे परिवार की उन्नति होगी और पूरा परिवार घर के मुखिया के नियंत्रण में रहेगा। जिससे जीवन अधिक बेहतर होगा।
दक्षिण दिशा को मुख्य रुप से तीन हिस्साें में विभाजित किया गया है।
- एक तो प्रधान दक्षिण
- दक्षिण और पूर्व वाला भाग (अग्निकोण )
- दक्षिण और पश्चिम वाला भाग (नैऋत्य कोण)
दक्षिण की जो सीमा पूर्व की ओर होती है। वह अग्नि का मुख्य स्थान होती है। इसे अग्निकोण के नाम से भी जानते है। यह दिशा अग्नि से पूरी तरह से परिपूर्ण होती है। यहां पर सबसे ज्यादा अग्नि तत्व पाया जाता है। यहां पर रसोईघर, या अग्नि (बिजली) के उपकरण रखना ज्यादा अच्छा होता है। जैसे - ट्रांसफार्मर, बिजली का बोर्ड, गीजर इत्यादि । इस स्थान की ऊर्जा का स्तर बहुत अधिक होता है। ऐसे में आप यहां पर बच्चों के कमरे का तो निर्माण करवा सकते है। परंतु बेडरुम यहां कभी भी नही करना चाहिए। ऐसे में पति-पत्नी के बीच कलह और क्लेश की वजह बन सकती है। इसलिए पति-पत्नी का बेडरुम भूलकर भी अग्निकोण में नही होना चाहिए।
दक्षिण दिशा के लिए रविन्द्र दाधीच जी के कुछ विशेष वास्तु टिप्स
- दक्षिणमुखी मकान के निर्माण में सबसे बड़ी समस्या यह होती है। कि ऐसे मकानों में सारा का सारा पानी (मुख्य सड़क) पर लाना होता है। और यह मुख्य सड़क दक्षिण में होती है। ऐसे में सारा का सारा ढ़ाल (ढलान) आगे की तरफ लाना पडेगा। तो यह एक समस्या दक्षिणमुखी द्वार में देखने को मिलती है।
- दक्षिण दिशा में द्वार करने के विकल्प बहुत ही कम होते हैं। ऐसे में लोगों को नक्शा सेट करने में भी परेशानी जाती है।
- दक्षिण दिशा में जहां पर कॉलोनियों का निर्माण हो चुका है। उसमें सेटबैक रुल फिक्स होते है। जिसमें से तरफ इनका प्रवेश (एंट्री) होगी और दूसरे की दूसरे तरफ से की एंट्री होगी। ऐसे में जिसका दक्षिण-पश्चिम की तरफ सेटबैक है। तो ऐसे प्लॉटों (भवनों) का दरवाजा ज्यादा अशुभ होता है।
- जब कोई व्यक्ति मकान या कोठी का निर्माण करता है। तो वह चाहता है, कि घर में घूसते ही ड्राइंग रूम आए, फिर बैठक कक्ष आए, इसके बाद लीविंगरुम, किचन आए और अंत में जाकर बेडरुम आए। परंतु दक्षिण मुखी मकान में पहले आपका बेडरुम बनाना आयेगा और फ्रंट में आपकी किचन आएगी और ड्राइंग रुम पीछे आयेगा। क्योंकि अधिकांश प्लॉट के एरिया 200-400 गज के होते है। ऐसे में आदमी यह नही चाहता है। कि वह अपने गेस्ट को पूरे घर से गुजारता हुआ पीछे लेकर ड्राइंग रुम में ले जाए। इसके लिए ऐसे घरों व प्लॉटों में नक्शा सेट करने में कभी दिक्कतें होती है। सामान्यतः क्या होता है। कि दक्षिण मुखी मकान का नक्शा सेट होता ही नही है। इसलिए लोग दक्षिण मुखी मकान को अनदेखा करने लग जाते हैं।
- दक्षिण मुखी में हर आदमी चाहता है। कि उसका मकान फ्रंट (सामने) से बड़ा दिखे। यदि किसी को फस्ट फ्लोर में कमरों की आवश्यकता नही हैं। तो वह एक दो कमरों का निर्माण करा देता है। ताकि मकान डबल मंजिल का दिखे। आदमी अक्सर चाहता है। कि फस्ट फ्लोर में कमरों का निर्माण पीछे की ओर हो जिससे मकान का पूरा depth दिखे और मकान दिखने में भी सुन्दर दिखे। तो दक्षिणमुखी में जब हम निर्माण ऊपर करते है। और मकान को पीछे को पीछे की तरफ लेकर जाते हैं। तो ऐसे में मकान का उत्तर ऊँचा हो जाता है। तो वह भी वास्तु की दृष्टि से गलत हो जाता है। जिससे दक्षिण मुखी मकान का नक्शा सेट नही हो पाता है।
- जिन लोगों को दक्षिण दिशा शुभ (सूट) होती है। तो उनके लिए तो वह अमृत के समान होती है। यदि प्लॉट व्यवसायिक (कमर्शियल) है तो ऐसे में दक्षिण दिशा शुभ प्रभाव देती है। और जिन लोगों को दक्षिण दिशा सूट नही (अशुभ) होती है। उनके लिए दक्षिण दिशा जहर के समान होती है। किसको दक्षिण दिशा शुभ होती है और किसको दक्षिण दिशा अशुभ होती है। इसका निर्धारण व्यक्ति की जन्म कुण्डली के आधार पर होता है।
- सामान्यतः व्यापारी वर्ग के लिए दक्षिण बहुत ही शुभ होता है। व्यापार की बहुत अच्छी तरक्की होती है।
- भारत के कई शहरों में ऐसी रोड़ (सड़के) है, जो पॉर्श लोकेशन में आती हैं। जहां पर एक तरफ तो उत्तरमुखी और दूसरी तरफ दक्षिणमुखी मकान, ऑफिस, कारखाने और फैक्ट्रिया बनी होती हैं। जिसमें देखने को मिलता है। दक्षिणमुखी द्वार वाला व्यापारी वर्ग अधिक सफल है उत्तरमुखी वालों की अपेक्षा।
- दक्षिण की दिशा सबसे लेट (देरी) से तरक्की करने वाली दिशा होती है। किसी भी देश का , गांव का, कॉलोनी का , सबसे लेट डेवलपमेंट होगा परंतु सबसे आगे वही होगा। आप देखे लें दक्षिण भारत , दक्षिण अमेरिका , दक्षिण मुंबई, दक्षिणी दिल्ली , दक्षिणी कोलकत्ता सब जगह अंत में दक्षिण दिशा का विकास हुआ है और सबसे आगे आये हैं।
- कुछ भवन जिसका दक्षिण पश्चिम द्वार होता है। और उनकी कुण्डली ठीक होती है तो उन मकानों के जो ग्रह स्वामी है। वो 8 साल, 12 साल, और 24 साल तक तो इतना धन कमाते हैं। कि उसकी कोई सीमा नही होती है। और उसके बाद वह उस दक्षिण-पश्चिम मकान को नही त्यागते हैं। तो वह और उसके आगे की पीढ़ियां उस मकान के अंदर परेशान ही रहती हैं।
- एक और दो पीढ़ी तक तो दक्षिणमुखी मकान तो लाभकारी होते हैं। फिर उसके बाद अर्थात तीसरी पीढ़ी को मकान बदल देना चाहिए। लगातार दूसरी तीसरी पीढ़ी उस दक्षिणमुखी घर (भवन) में निवास नही करना चाहिए।
वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)