दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥
अब प्रश्न यहां उठता है। कि अधिकांश विद्वान व वास्तुशास्त्रियों ने दक्षिण दिशा को अशुभ क्यों माना है। ऐसे में यदि आपका मकान, भूखण्ड, ऑफिस, फैक्ट्री, कारखाना, स्कूल, कॉलेज, हास्पिटल इत्यादि दक्षिणमुखी है। तो शास्त्रों के मत के अनुसार हम उनको अशुभ नही मान सकते है। क्योंकि ऐसा ग्रंथों में कहीं पर भी उल्लेख नही है कि दक्षिण दिशा अशुभ होती है। वास्तु शास्त्र के प्रमुख प्राचीन ग्रंथ मुख्य द्वार के संबंध में वर्णन करते हैं। कि मुख्य द्वार पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण सभी दिशाओं व सभी वास्तु कोणों में कीए जा सकते हैं।
वास्तु के प्राचीन ग्रंथ मानसार के अनुसार द्वार के लिए एक विशेष सूत्र का वर्णन किया गया है। जोकि इस प्रकार है -
“गृहयमे विशाले तु नन्दनन्दपदं भवेत् । पूर्वद्वारं च हम् र्याणा महाद्वारं महेन्द्रके।।
अथवा मध्यसूत्रस्य वामे द्वारं प्रकल्पयेत् । दक्षिणद्वार व महाद्वारं गृहक्षते।।”
अर्थात निम्नलिखित चित्र में ध्यान से देखा जाये तो उत्तर दिशा में द्वार करने की तीन दिशाएं हैं। और इसी प्रकार पूर्व दिशा में भी द्वार करनी की तीन ही दिशाएं हैं परंतु पश्चिम दिशा में दो द्वार करने विकल्प है और दक्षिण दिशा में द्वार करने का मात्र एक ही विकल्प उपलब्ध है। जिसे वृहत्क्षत की जगह के नाम से जानते है और वृहत्क्षत में ही दक्षिण दिशा में द्वार करना शुभ होता है। दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार करने के विकल्प कम होने के कारण विद्वान लोग दक्षिण दिशा को कम महत्व देते है। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नही है।
।। दक्षिण अशुभत्व विकल्पयेन द्वारात् ।।
(शिल्प प्रकाश टीका)
यम जो कि दक्षिण दिशा के देवता माने जाते है। उनके संदर्भ में कहा गया है। कि यम तो मौत के देवता होते है क्योंकि यम का तो मतलब ही मौत होता है। जबकि ऐसा नही है यमराज को ही धर्मराज कहते हैं। जिसका प्रमाण वास्तु शास्त्र के एक प्रमाणिक प्राचीन गंथ में मिलता है। और उसका नाम है अपराजिता पृच्छाः ।
अपराजिता पृच्छाः में स्पष्ट रुप से वर्णन किया गया है। कि दक्षिण दिशा से सामान लाभों की प्राप्ति होती है। क्योंकि दक्षिणमुखी घर में निवास करने वालों को अच्छा स्वास्थ्य और अच्छे धन की प्राप्ति होती है। अपराजिता पृच्छाः का एक श्लोक है । जिसमें उल्लेख किया गया है। कि ।। क्षेमलाभस्तु दक्षिणे ।।
आज के समय में इंटरनेट और यूट्ब की दुनिया ने लोगों को वास्तु और अन्य ग्रंथों के मुख्य सिद्धांतों से दूर किया है। चाहे फिर आप ज्योतिष की बात करें, वास्तु की बात करें या फिर आयुर्वेद और प्राचीन ग्रंथों की। इन सभी का यथार्थ ज्ञान आज की अधिकांश पीढ़ी में उतना देखना को नही मिल पा रहा है। उनमें तो केवल वहीं ज्ञान का प्रचार-प्रसार हो रहा है जो उन्होंने इंटरनेट व यूट्ब के माध्यम से ग्राहण किया है।
“अशुभ दिशा नास्ति”
अर्थात कोई भी दिशा अशुभ नही होती है …. (शिल्पप्रकाश टीका)
चूकि इंटरनेट वही सीखाता व दिखाता है जो आंकड़े उसमें प्रविष्ट कीए गये हैं। ऐसे में इस आर्टिकल इस बात का खुलासा शास्त्रों के मत के अनुसार किया गया है कि क्या दक्षिण मुखी द्वार शुभ है या अशुभ।
वास्तु आर्ट के सह-संस्थापक रविन्द्र जी शास्त्रों के मत और अपने मत के अनुसार इस बात का पूरी तरह से खण्डन करते है। कि दक्षिण मुखी द्वार अशुभ होता है। कोई भी दिशा अशुभ नही होती है। यदि अशुभ होती तो तीन ही दिशाओं का जिक्र होता और चौथी दिशा को अशुभ मानकर छोड़ दिया जाता। लोग दक्षिण को मंगल की दिशा या फिर यम की दिशा भी मानते है। जिसके कारण वह अपने मन में भय को बैठा लेते है।
अब बात कर लेते हैं। कि कहां और क्यों दक्षिण दिशा को अशुभ माना गया है। जिसका उल्लेख भी शिल्प प्रकाश टीका में किया गया है।
।। दक्षिण अशुभत्व विकल्पयेन द्वारात् च प्लवेन् ।।
अर्थात विद्वान लोग दक्षिण दिशा को इसलिए अशुभ मानते है। क्योंकि दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार करने का एक ही विकल्प होता है। इसके अतिरिक्त यदि दक्षिण दिशा में ढ़लान है। तो ऐसे स्थिति में भवन का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में करने पर वास्तुशास्त्री वर्जित करते हैं। इन कारणों की वजह से दक्षिण दिशा को मुख्यद्वार के लिए अनदेखा कर देते हैं।
वास्तुशास्त्र से संबंधित आप किसी भी ग्रंथ का अध्ययन करके देख लिजिए। आपको ऐसा कहीं पर भी देखनो को नही मिलेगा कि दक्षिण दिशा अशुभ होती है। आपको सभी वास्तु ग्रंथों में चारों दिशाओं में मुख्य द्वार करने के नियम और सिद्धांत मिलेंगे। इस आर्टिकल में हमने द्वार करने के प्रमुख नियम और सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन भी किया है। कि किस दिशा में और कहां पर मुख्य द्वार करना चाहिए।
अब यहां पर विचार करने योग्य बात है। कि आपका घर, फैक्ट्री, या ऑफिस दक्षिणमुखी है। तो आपको इसका मुख्य द्वार कहां पर करना चाहिए। वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में द्वार करने की सबसे अच्छी जगह वृहत्क्षत को बताई गई है। क्योंकि वास्तु के प्रमाणिक ग्रंथ विश्वकर्मा प्रकाश में वर्णन मिलता है। कि
।। आग्नेयात नैरुत्यात दक्षिणे स्थिताः ।।
अर्थात दक्षिण-पूर्व से लेकर दक्षिण-पश्चिम तक जो पूरा भाग है। उसको दक्षिण दिशा माना जाता है। ऐसे में आप किसी अच्छे वास्तु शास्त्री की मदद या फिर स्वयं वृहत्क्षत नामक जोन का निर्धारण करके वहां से आप दक्षिणमुखी प्लॉट, फैक्ट्री या फिर भवन का मुख्य द्वार कर सकते हैं। और वहां पर मुख्य द्वार निर्माण करने से आपको लाभ भी होगा। ऐसा शास्त्रों में वर्णन किया गया है। क्योंकि “समराङ्गणसूत्रधार” में भी कहा गया है। कि -
।। गृहक्षतं तु विहितं दक्षिणेन शुभावहम् ।।
ऐसे में यदि आपके भूखण्ड (प्लॉट) का मुख्यद्वार दक्षिण की ओर है। तो गृहसत में मुख्य द्वार का निर्माण करना चाहिए। तो आपको सब प्रकार की उन्नति और शुभलाभ प्राप्त होगा। और अब आपको इस बात से बिल्कुल निश्चंत हो जाना चाहिए। कि शास्त्रों में ऐसा कहीं पर भी उल्लेख नही किया गया है। कि दक्षिण दिशा अशुभ होती है। शास्त्रों में सिर्फ ये बताया गया है। कि दक्षिण में कहां पर मुख्य द्वार करना चाहिए।
समराङ्गणसूत्रधार” में तो यहां तक भी कहां गया है। कि यदि आपको धर्ममय या धार्मिक जीवन जीना है। तो आपको दक्षिणमुखी घर में निवास करना चाहिए। या फिर अनुशासित जीवन, धर्मपरायण जीवन, नियम के साथ जीना चाहते हैं। तो उसके लिए दक्षिण दिशा उत्तम मानी जाती है। क्योंकि यमदेव नियम, अनुशासन, और न्याय के देवता है।
यदि वर्ण की बात करें तो वैश्य और क्षत्रिय को दक्षिणमुखी जमीन लेना अत्यंत श्रेयकर (अतिशुभ) मानी जाती है। लेकिन दक्षिण दिशा में ढ़लान नही होना चाहिए। क्योंकि ढ़लान रोग और धनहानि की संभावना को प्रकट करता है। ऐसे में हमें आर्किटेक्ट व इंजीनियरिंग (architect and engineering) की मदद से ढ़लान को नियंत्रण कर लेते है। तो यह भूखण्ड दोषमुक्त हो जाता है। और आपको यही दक्षिण दिशा शुभ फल देने वाली बन जाती है।
घर के दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार या यहां तक कि किसी भी अन्य असुविधा के लिए घर के मालिक के जीवन में हर समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। यह वास्तु के शास्त्रीय ग्रंथों की अज्ञानता या गलत व्याख्या के कारण है।
दक्षिण मुखी भूखंड बहुत अधिक 'नकारात्मक होते है , और इसी भ्रम के चलते दक्षिण की ओर वाले भूखंड अप्रत्यक्ष रूप से अन्य दिशाओं के भूखंडों की तुलना में कम रेट में बेचे या खरीदे जाने लगे और यही कम्र लगातार आज भी जारी हैं। ऐसी गलत अवधारणा के लिए वास्तुशास्त्रियों के साथ-साथ लोगों को भी जागरुक होगा। कि दक्षिण दिशा नकारात्मक नही है। वह भी अन्य चार दिशाओं के बराबर मान रखती है और उसकी भी सभी दिशाओं के बराबर वैल्यू है।
वास्तु शास्त्र में सभी आठ द्वार दिशाओं में से चुनने के विकल्प मौजूद हैं। मुख्य द्वार के निर्माण का निर्णय परिवार या समाज में मालिक की स्थिति, जाति, मिट्टी के प्रकार और शहर की राशि, भूखंड के वर्ण आदि के अनुसार व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। और इस तरह की चयन प्रक्रिया में दक्षिण सहित कोई भी दिशा उसके लिए उपयुक्त हो सकती है। वास्तु ग्रंथों के कुछ उदाहरण जो विशेष रूप से मुख्य द्वार बनाने के लिए दक्षिण सहित सभी आठ दिशाओं को प्रदान करते हैं, संक्षेप में यहां दिए गए हैं।
आय-गृह पिंड विधि: मुहूर्त चिंतामणि में भी दिया गया है (अध्याय 12 श्लोक 11-12) पिंड का अर्थ है उस भूखंड की भूमि का क्षेत्र जहाँ निर्माण किया जाना है, 'आ' का शाब्दिक अर्थ आय है और यह एक संख्यात्मक मूल्य है। पिंड नामक प्लॉट भूमि के क्षेत्र में कुछ अंकगणित लागू करने के बाद यहां भूखंड का क्षेत्रफल 1. मालिक या 2. पत्नी या 3. पुत्र या 4 प्रमुख वास्तुकार के हाथ की लंबाई से मापा जाता है।
इस प्रकार प्राप्त डेटा जिन्हें आय कहा जाता है, का मूल्यांकन पाठ में दिए गए मानदंडों के अनुसार किया जाता है।
इसका सीधा सा मतलब है कि यदि मुख्य द्वार दक्षिण में है तो नए घर में प्रवेश करने के लिए चित्र और उत्तराफाल्गुनी को चुनें या पसंद करें। दक्षिण मुखी मुख्य द्वार घर के लिए मुहूर्त का प्रावधान स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि मुहूर्त शास्त्र में भी दक्षिण मुखी दरवाजे के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह नहीं है और दक्षिण दरवाजे के लिए कोई विशेष पूजा निर्धारित नहीं है ।
वास्तु सहित खगोल विज्ञान की सभी शाखाओं में शास्त्रीय ग्रंथों के बारे में जागरूकता पैदा करने और तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक स्वभाव को बनाए रखने के समर्थन की अत्यधिक सराहना की जाती है।
वर्तमान वास्तु द्वारा दक्षिण दिशा में दिलचस्प बात यह है कि यदि दक्षिण और दक्षिणी कोणों पर शासन करने वाले ग्रह जैसे शुक्र दक्षिण-पूर्व, मंगल दक्षिण और राहु दक्षिण-पश्चिम - चौथे घर पर प्रभाव डाल रहे हैं, जो किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में रहने वाले वातावरण को नियंत्रित करता है, तो ऐसा व्यक्ति ज्यादातर एक घर में रहता है।
जन्म कुंडली में सूर्य की गृह स्थिति और घर में सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता के बीच संबंध बनाना सबसे रोमांचक और दिलचस्प होगा। नवम भाव में सूर्य खुला आंगन और पर्याप्त धूप देने वाला माना जाता है। ज्योतिष में दक्षिण दिशा का ग्रह सबसे अधिक प्रभावशाली होता है: ज्योतिष में दक्षिण दिशा को बहुत शक्तिशाली और जीवन-निर्माण प्रभाव प्रदान करने वाला माना जाता है।
प्रत्येक कुंडली में भी लिखा है। लग्न या उदीयमान राशि पूर्व का प्रतिनिधित्व करती है और वंश या सप्तम भाव पश्चिम को दर्शाता है। दशम भाव के बीच में दक्षिण होता है। पृथ्वी के पश्चिम से पूर्व की ओर घूमने के कारण सभी ग्रह दक्षिण से होते हुए पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते हैं। जन्म कुंडली के पश्चिमी डिजाइन में इसे सही ढंग से दर्शाया गया है क्योंकि इसमें लग्न को बाईं ओर, जो कि पूर्व में है, और सातवां घर दाईं ओर, जो पश्चिम है, और दसवां घर सबसे ऊपर है, जो दक्षिण में है। अष्टकवर्ग द्वारा भी द्वार निर्णय या दिशा चयन में सहायक होता है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि दिशाएं खगोलीय बिंदु हैं और एक ही हैं चाहे वह वास्तु, ज्योतिष या नेविगेशन हो। मेरा कहना है कि कोई भी दिशा खराब नहीं है जैसा कि वर्तमान वास्तु में दर्शाया गया है। विद्वान पाठकों को अब आश्वस्त होना चाहिए कि सभी शास्त्रीय और मानक वास्तु ग्रंथ मुख्य द्वार की ओर मुख वाली चारों दिशाओं को समान व्यवहार देते हैं और दक्षिण मुखी मुख्य द्वार के साथ कोई दोष नहीं पाते हैं । मानक शास्त्रीय वास्तु अपनी वास्तविक वैज्ञानिक भावना में व्यक्तिगत शुभता पर जोर देता है।
पराबैंगनी विकिरण पर डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है। कि यूवीआर हमारे शरीर में विटामिन डी के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है, जो शरीर की विभिन्न प्रणालियों के विभिन्न कार्यों के लिए आवश्यक है। यह हड्डियों के लिए कैल्शियम के निर्माण के लिए विशेष रूप से आवश्यक है। यूवीआर सौर विकिरण का एक घटक है और यह लगातार पृथ्वी द्वारा हर पल सभी दिशाओं से प्राप्त होता है। हालांकि कई कारक यूवीआर स्तरों को प्रभावित करते हैं। जैसे कि स्थान के अक्षांश में उच्च यूवीआर स्तर मौजूद होते हैं जब आवास भूमध्य रेखा के करीब होता है।
डब्ल्यूएचओ गर्मियों के दौरान अतिरिक्त यूवीआर विकिरण के अवशोषण के लिए महत्वपूर्ण उपायों की सिफारिश करता है। रिपोर्ट कहती है कि घास, मिट्टी और पानी सूर्य से प्राप्त यूवीआर के प्रभाव को दस प्रतिशत से भी कम को दर्शाते हैं। इसका मतलब है कि ये सूर्य से प्राप्त नब्बे प्रतिशत यूवीआर को अवशोषित करते हैं। इसलिए, घास का रोपण और जमीन के कुछ हिस्से को कच्चा या बिना सीमेंट के छोड़ देना या मिट्टी से भरे बर्तनों को दक्षिण दिशा में, पूर्व से पश्चिम रेखा से दक्षिण की ओर रखना अधिक प्रभावी हो सकता है। दीवारें अवशोषित करने के बजाय ऊर्जा को प्रतिबिंबित करती रहती हैं, इसलिए एक हरा पैच अद्भुत काम करेगा। यह आसानी से बदलने वाला उपाय हर घर में अपनाना चाहिए। तुलनात्मक रूप से दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम मुखी घर को गर्मियों के दौरान इसकी अधिक आवश्यकता हो सकती है।
सूर्य की ऊंचाई : आकाश में उच्च सूर्य, उच्च यूवीआर विकिरण की ओर जाता है।
भवन की ऊँचाई :यूवी का स्तर हर एक हजार मीटर ऊंचाई के साथ लगभग 5% बढ़ जाता है।
ओजोन परत:ओजोन कुछ यूवीआर को अवशोषित करता है, अगर यह समाप्त हो जाता है, तो सामान्य रूप से अधिक यूवीआर पृथ्वी पर पहुंच जाता है।
जमीनी परावर्तन:कई सतहें सूर्य की किरणों को परावर्तित करती हैं और यूआरवी के समग्र जोखिम को बढ़ाती हैं। घास और मिट्टी और पानी सूर्य से प्राप्त यूवीआर के दस प्रतिशत से भी कम को प्रतिबिंबित करते हैं, (इसका मतलब है कि ये नब्बे प्रतिशत यूवीआर किरणों को अवशोषित करते हैं) शुष्क समुद्र तट की रेत पंद्रह प्रतिशत और ताजा बर्फ अस्सी प्रतिशत दर्शाती है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि यूवीआर कम मात्रा में आवश्यक है क्योंकि यह हमारे शरीर में हड्डियों और मस्कुलो-स्केलेटल सिस्टम के लिए विटामिन डी का उत्पादन करता है।
इस डेटा से यह स्पष्ट है कि दक्षिणमुखी भूखण्ड या घर में प्रत्येक शहर या कस्बे में समान मात्रा में यूवीआर प्राप्त नहीं होता है और यह दोपहर के समय सूर्य की अधिकतम ऊंचाई के दौरान अक्षांश से अक्षांश तक भिन्न होता है जिसे सूर्य का परिणति बिंदु कहा जाता है। तदनुसार, यूवीआर का दैनिक प्रभाव भी सूर्य की ऊंचाई और दिन की अवधि की दैनिक भिन्नता के साथ बदलता रहता है जो एक दूसरे के विपरीत है जैसा कि पहले बताया गया है। किसी भी दिन की आगे की ऊंचाई और अवधि दोनों ऋतुओं से भिन्न होती है। 21 मार्च को दिन और रात बराबर होते है जिसको वसंत संपात कहते है और यह एक खगोलीय घटना है। भारतीय प्राचीन खगोल शास्त्रियों ने सबसे बड़े दिन की घोषणा की प्रारंभ में कर दी थी। जिसमें बताया गया था कि इस दिन यानि कि 21 जून को सूर्य कि किरणें प्रथ्वी पर 15-16 घंटे पड़ेगी। यह सभी तर्क वास्तु और ज्योतिष की गणना पर आधारित और सर्वमान्य तथा पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रमाणितकता के साथ सत्यापित है।
सर्दियों में सूर्य की गर्मी और विकिरण की अधिक आवश्यकता होती है और यहां तक कि सर्दियों में भी धूप सेंकने को प्राथमिकता दी जाती है जब सूर्य भूमध्य रेखा से दक्षिण की ओर होता है। इस बिंदु से, दक्षिण मुखी घरों को सर्दियों के दौरान अधिक सुखदायक और स्वस्थ सौर विकिरण प्राप्त होता है। सौर विकिरण पैटर्न किसी भी तरह से हमें दक्षिणमुखी गुणों को नीचा दिखाने की अनुमति नहीं देता है, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
यदि आप ज्योतिषी या खगोलशास्त्री हैं, तो आप केवल दक्षिण से रात्रि में आकाश के ग्रहों की गति देख सकते हैं क्योंकि नक्षत्रों से सजे आकाश में अद्भूद नजारा दिखाई देता है। जिसमें बारह राशियाँ पूर्व से पश्चिम तक केवल दक्षिण से होती हुई जाती हैं। दक्षिणमुखी घर से उदीयमान परिणति और सूर्य और चंद्रमा का अस्त होना भी दिखाई देता है। सूर्य की गर्मी गर्मियों में दोपहर के आसपास अधिक महसूस होती है। जब सूर्य की ऊंचाई सबसे अधिक होती है। दोपहर के समय जब सूर्य दक्षिण दिशा में होता है तो दक्षिणमुखी घर का एकमात्र ग्रीष्म ऋतु-आधारित नुकसान होता है, लेकिन बारिश के बाद के मौसम में नमी आधारित हानिकारक जीवाणुओं को साफ करने के लिए समान रूप से एक फायदा होता है और पूरे सर्दियों में कहीं अधिक फायदेमंद होता है। इसलिए खिड़कियों, दरवाजों और बरामदों आदि पर रंगों और अनुमानों का कोण आदि को इस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए कि गर्मी के मौसम में दोपहर के दौरान किसी भी दिशा के घर को सीधे सूर्य के प्रकाश से बचाया जा सके।
वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)