घर मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। भारत की चौंसठ कलाओं में से वास्तु कला भी एक है। वास्तु कला का अर्थ क्षेत्र विशेष जैसे जमीन, भवन, मकान , फ्लैट व अपार्टमेंट से है। वास्तु शास्त्र वह विज्ञान है जिसमें गृह निर्माण की उन सूक्ष्म तकनीकों का अध्ययन है जिनके आधार पर निर्मित घर के निवासी सुख, शांति व समृद्धि पूर्ण जीवन-यापन कर सकते हैं। वास्तु में सभी दिशाओं को विशेष महत्व दिया गया है। हम जानते हैं कि सूर्य की किरणों का मुख्य द्वार पूर्व दिशा है, गृह वास्तु का प्रभाव मनुष्य पर वैसे ही है जैसे सूर्य का प्रभाव प्रकृति या ब्रह्माण्ड पर है। वास्तु के मूल सिद्धांत सौर मण्डल पर आधारित है। अपार्टमेंट में इन सभी बेसिक बातों का ध्यान रख कर उसका चयन (खरीदना) चाहिए।
क्या कभी अपार्टमेंट निर्माण की स्थिति और दिशा के पक्ष और विपक्ष के बारे में सोचा है? (Have you ever thought about the pros and cons of the location and direction of apartment construction?)
अपार्टमेंट को खरीदने या योजना बनाने से पहले कई निर्माण पहलुओं पर गौर करना चाहिए । यदि अपार्टमेंट का द्वार पूर्व में या उत्तर में अथवा ईशान दिशा में हो तो स्वास्थ्य, धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। दक्षिण व पश्चिम वाले अपार्टमेंट भी अशुभ नहीं होते है परंतु उनमें द्वार के विकल्प बहुत ही कम होते है। इस कारण से दक्षिण दिशा को लोग इग्नोर कर देते है। वास्तु संसार के सभी स्थानों में लागू होता है। उदाहरणार्थ पूर्व में दरवाजे व खिड़कियां होने के कारण सूर्य की किरणें अवश्य अन्दर आती हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक है। अच्छे वास्तु से बने गृह में रहने वालों की संतानों का समय पर विवाह हुआ है और जीवन में शीघ्र ही व्यवस्थित हुए हैं।
1. कैसी होनी चाहिए आपके अपार्टमेंट की बुनियादी संरचना (How should be the basic structure of your apartment ?) -
अपार्टमेंट का ब्रह्म स्थान, आकार, कमरों का निर्माण, फर्नीचर, अपार्टमेंट में जल की व्यवस्था, दरवाजे तथा खिड़कियों इत्यादि की स्थिति विशेष महत्वपूर्ण होती है।
2. अपार्टमेंट मुख्य प्रवेश द्वार कहां से होना चाहिए (Where should be the apartment main entrance)
घर के मुख्यद्वार को सुख-समृद्धि, परिवार की उन्नति और विकास का प्रतीक माना जाता है। शरीर की पांच इंद्रियों में से जो मुख का संज्ञा दी गई है वही भवन के मुख्य द्वार की होती है। आपके घर के दरवाजों का सीधा संबंध उस भवन में निवास करने वाले लोगों के सामाजिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति से होता है।
- ईशान कोण (NE) का जो भाग उत्तर (N) में होता है वह उच्चकोटि की श्रेणी में आता है। इस उच्चकोटि में द्वार बनाना शुभ फलदायक होता है।
- पूर्व का ईशान कोण (NE) भी उच्चकोटि में आता है। पूर्वी-ईशान (ENE) में उच्चकोटि में द्वार बनाना शुभ और अच्छे परिणाम देने वाला होता है।
- पूर्व दिशा का अग्निकोण (SE) निम्नकोटि की श्रेणी में गिना जाता है। इस दिशा में द्वार करने पर अच्छे फल नही प्राप्त होते हैं।
- दक्षिण दिशा (S) का अग्निकोण (SE) उच्चकोटि में आता है। दक्षिणी-आग्नेय (SSE) में द्वार निर्माण करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
- दक्षिण नैऋत्य (SSW) कोण निम्मकोटि की श्रेणी में आता है। इसलिए यह दिशा शुभ नही मानी जाती है। दक्षिणी नैऋत्य (SSW) में द्वार करने से आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। और उन कमरों में रहने वाली स्त्रियों को स्वास्थ्य से संबंधित दिक्कते आती रहती हैं।
- पश्चिम दिशा (W) का नैऋत्य कोण (SW) निम्नकोटि की श्रेणी में आता है। इस दिशा में द्वार निर्माण करना शुभदायी नही होता है। ऐसे कमरे पुरुषों के लिए ठीक नही होते हैं।
- पश्चिम दिशा (W) का वायव्य कोण (NW) उच्चकोटि के अंतर्गत आता है। यहाँ पर द्वार करना शुभ होता है।
- उत्तर दिशा का वायव्य कोण (NW) निम्नकोटि में गिना जाता है। इसलिए यहां पर द्वार करना अशुभ होता है।
- एक दरवाजे के ऊपर अगर दूसरा दरवाजे का निर्माण करना पड़े तो ऊपर की प्लोर वाले दरवाजे का साइज नीचे वाले दरवाजे की तुलना में थोडा सा छोटा बनाना चाहिए।
- मुख्य दरवाजे को आकर्षक (सुन्दर) या अच्छा बनाना चाहिए एवं मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्ह लगाना चाहिए।
3. अपार्टमेंट का लिविंग रुम किस दिशा में होना चाहिए (what should be the direction of living room of the apartment as per Vastu) ?
लिविंग रुम का निर्माण प्रत्येक व्यक्ति अपनी सुरुचि से कलात्मक ढंग से करताहै। जिससे अपार्टमेंट पर आने-जाने वाले व्यक्तियों पर अच्छा प्रभाव पड़े। घर के सदस्य भी काफी समय इसमें व्यतीत करते हैं। वास्तुशास्त्रानुसार इसको अच्छा व सुन्दर रखने से इसका उत्तम फल प्राप्त किया जा सकता है।
अपार्टमेंट के लिविंग रुम में निम्नलिखित बातों का ध्यान जरुर दें - Vastu Points/tips for designing apartment -
- लिविंग रुम उत्तर दिशा (N) में उत्तम है, पूर्व दिशा (E) में आग्नेय (SE) छोड़कर भी बैठक कक्ष का निर्माण कर सकते हैं।
- लिविंग रुम का द्वार उत्तर (N) व पूर्व दिशा (E) में उत्तम है। आग्नेय (SE) व नैऋत्य (SW) में द्वार का निर्माण नहीं करें।
- लिविंग रुम में कूलर व एसी (Cooler/AC) पश्चिमी भाग में रखें, आग्नेय (SE) में नहीं लगावें ।
- टेलीविजन दक्षिण या पश्चिम आग्नेय कोण (SE) में रखें। नैऋत्य (SW) ईशान (NE) में नहीं रखें। नैऋत्य (SW) व ईशान में बार-बार खराब होने की सम्भावना रहती है। वायव्य में ज्यादा चालू रहेगा तो अधिकतर समय वहीं व्यतीत होगा।
- लिविंग रूम में काले या लाल रंग का प्रयोग नहीं करें; हरा, नीला, पीला या सफेद रंग ठीक है।
- लिविंग रूम की उत्तर व पूर्व (NE) की दीवार पर सुन्दर पेंटिंग लगा सकते हैं।
- फर्नीचर पश्चिम या दक्षिण भाग में रखें। भारी सामान, शोकेस व अतिरिक्त कुर्सियाँ भी इसी भाग में रखें।
- घर के मुख्य व्यक्ति को कक्ष में उत्तर या पूर्व दिशा में मुंह करके बैठना चाहिए, सोफा इत्यादि इसी प्रकार सेट करें।
- लिविंग रूम में तिकोना, टेढ़ा-मेढ़ा, अंडाकृति, षटकोण आकृति का फर्नीचर न लगावें ।
- पशु-पक्षियों, अग्नि जलती हुई, टूटी हुई, खण्डित, युद्ध की तस्वीर, सूखे पेड़ की तस्वीर, रोती हुई लड़की और स्त्रियों के चित्र, या महाभारत के चित्र आदि बैठक कक्ष में न लगावें ।
- ईशान कोण में ईश्वर को फोटो लगाएं।
4. अपार्टमेंट का बेडरूम किस दिशा में होना चाहिए (where should be the direction of the bedroom in the apartment )? -
अपार्टमेंट में बेडरूम का विशेष महत्व है। दिन-भर की भाग-दौड़ की जिन्दगी के बाद प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसको भरपूर आराम मिले। है अच्छी चैन की नींद सोये ताकि वह दूसरे दिन उसी स्फूर्ति और चुस्ती-फुर्ती से अपना कार्य कर सके। इसलिए बेडरूम निर्माण और उसमें सोने के लिए उचित स्थान हेतु निम्न का ध्यान रखें -
- अपना बेडरूम नैऋत्य (SW) व दक्षिण (S) दिशा में रखें।
- पूर्व दिशा वाले कमरे में बेडरूम रख सकते हैं, परंतु इसमें अध्ययन (पढ़ने वाले) बालक-बालिकाओं को सोना चाहिए।
- पश्चिम दिशा वाले कमरे में भी बेडरूम उत्तम है, इससे जीवन शुभप्रद रहेगा।
- स्वास्थ्य की दृष्टि से दक्षिण कक्ष में शयन करना उत्तम है।
- नैऋत्य (SW) दिशा वाले कमरे में पूर्व-उत्तर में अधिक खाली स्थान छोड़कर पलंग लगाने की व्यवस्था करें।
- उत्तर दिशा वाले कमरे में बेडरूम में केवल पढ़ने वाले बच्चों को ही सोना चाहिए या पढ़ने वाले बच्चों का बेड़रुम उत्तर दिशा में हो सकता है।
- शयन करते समय सिर दक्षिण दिशा (S) में रखें, जिससे पैर स्वयमेव उत्तर दिशा (N) में रहेंगे।
- ईशान (NE), आग्नेय (SE) में छोटे बच्चों का बेडरूम हो सकता है, परन्तु बड़े व्यक्तियों के लिए यह स्थान उपयुक्त नहीं है।
- नैऋत्य (SW) में बेडरूम हो तो वायव्य (NW) में भी हो सकता है, परन्तु वायव्य (NW) में लड़कियों के लिए ठीक रहता है।
- मेहमानों के लिए पश्चिम-उत्तर में बेडरूम हो, यहाँ अधिक समय तक मेहमान नहीं रहेंगे । इस बेडरूम में दूसरा व तीसरा बेटा भी रह सकता है।
- नैऋत्य (SW) दिशा का कोना बेडरूम में कभी भी खाली नहीं रखें।
- बेडरूम के उत्तर या पश्चिम भाग में शौचालय, चेंजिंग रूम, बाथरूम, टब बाथ की व्यवस्था कर सकते हैं।
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बेडरूम में पूजा घर की व्यवस्था नहीं करें।
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घर के मुखिया का बेडरूम पश्चिम दिशा में नैऋत्य (SW) कोने में हो।
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यदि आपका मकान बहुमंजिला है तो ऊपर की मंजिल पर नैऋत्य (SW) में गृह स्वामी का बेडरूम श्रेष्ठ रहेगा। यह बेडरूम बड़े बच्चों के लिए भी योग्य है।
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पश्चिमी नैऋत्य व दक्षिण नैऋत्य में छोटे बच्चों का बेडरूम न बनाएं इससे अशान्ति बढ़ सकती है।
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घर का भारी सामान, कपड़े रखने की अलमारी आदि नैऋत्य (SW) के दक्षिण या पश्चिम में हो ।
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दक्षिणाभिमुखी कक्ष में बेडरूम कर सकते हैं, परन्तु किसी भी परिस्थिति में दक्षिण की तरफ पाँव न रखें।
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नव-दम्पत्ति हेतु पूर्व दिशा में बेडरूम वर्जित है। पूर्व दिशा का बेडरूम छोटे बच्चों के लिए उत्तम है।
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अविवाहित पुत्र व मेहमानों के शयन हेतु पूर्व दिशा में बेडरूम बना सकते हैं।
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आग्नेय (SE) दिशा में विवाहित व्यक्तियों का बेडरूम न हो,इससे परेशानी व झगडे आदि होते हैं।
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घर के बुजुर्ग भी पूर्व दिशा में बने बेडरूम में सो सकते हैं।
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उत्तर-पूर्व (NE) में बने बेड़रुम में छोटे बच्चे व भाई-बहन भी सो सकते हैं परंतु विवाहित जोड़े न रहें।
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ईशान दिशा (NE) में बेडरूम नहीं रखें। इस स्थान पर बेडरूम होने से प्रगति में कमी, बीमारियों में वृद्धि पुत्रियों के विवाह में विलम्ब व आर्थिक प्रगति में बाधाएँ आती हैं। परंतु छोटे बच्चों का बेड़रुम बना सकते हैं।
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हीटर, इलेक्ट्रिक उपकरण, टी.वी. बेडरूम के आग्नेय (SE) में हो ।
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लिखते-पढ़ते समय बेडरूम में बच्चों का मुंह पूर्व व उत्तर की तरफ होना चाहिए।
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हवा के आवागमन हेतु बेडरूम में पश्चिम भाग में अधिक स्थान (रोशनदान) हो। पूर्व व उत्तर में बड़ी खिड़कियों का निर्माण हो । अलमारी व शोकेस का निर्माण पश्चिमी भाग में करें।
5. अपार्टमेंट का रसोईघर कहां होना चाहिए (where should be the kitchen in the apartment) -
किचन (रसोई, पाकशाला, रन्धनशाला) का सीधा संबंध हमारे घर के सदस्यों के स्वास्थ्य से जुड़ा होता है, इसलिए किचन निर्माण में वास्तु का विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि कि एक अच्छे वास्तु अनुसार बनी किचन अच्छे स्वास्थ्य का निर्माण करेंगी परंतु वहीं पर किचन की खराब वास्तु आपका स्वास्थ्य बिगाड़ भी सकती है और खासकर स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए तो किचन बहुत बड़ी परेशानी पैदा कर सकती है।
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आग्नेय (SE) कोण में किचन का निर्माण करें तथा आग्नेय (SE) कोने में ही चूल्हा, अंगीठी या गैस स्टोव आदि रखें, परन्तु दोनों तरफ से कुछ स्थान छोड़कर ।
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दक्षिणाभिमुखी मकान में यदि आग्नेय (SE) में किचन न बन सके तो वायव्य (NW) में बना सकते हैं।
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ईशान (NE) में किचन न बनावें । हमारा अनुभव है कि इससे गृह स्वामी निर्धन व पुरुष संतान में कमी आती है।
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सिंक पश्चिम दीवार (west wall) पर आ सकता है, परंतु दक्षिण-पश्चिम (SW) में नहीं आना चाहिए।
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पूर्व व उत्तर दिशाओं में हल्का सामान (कम वजन) रखें।
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डाइनिंग टेबल किचन के पश्चिम या वायव्य (NW) या पश्चिम (W) में रख सकते हैं।
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खाना पकाते समय गृहणियाँ मुख पूर्व दिशा की ओर रखें ।
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अन्न, मसाले व अन्य आवश्यक सामान में रख में दक्षिण व पश्चिम भाग में रखें ।
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पानी की मटकी, वाश-बेसिन, नल आदि का प्रबंध ईशान (NE) या उत्तर दिशा में करें। या पूर्व की दीवार (East Wall / North Wall) पर भी कर सकते हैं।
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किचन में काला या सफेद रंग का प्रयोग नहीं करें। दीवारों व फर्श का रंग गुलाबी, नारंगी, भूरा अथवा लाल हो।
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उत्तर दिशा में में रख का निर्माण नहीं करें इससे बाजारी कर्ज या ऋणी होने की संभावना बढ़ेगी । स्थायी सम्पत्ति बिकने की संभावना बढ़ेगी। धन हानि होने की सम्भावनाएँ बढ़ेगी।
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फ्रिज, मिक्सर ग्राइंडर ईशान (NE) में नहीं रखें। यह सामान उत्तर दक्षिण व पश्चिम में रख सकते हैं।
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गैस स्टोव मुख्य द्वार के सामने नहीं रखें तथा रसोई के द्वार के सामने भी नहीं आना चाहिए।
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दक्षिण पूर्व में जगह न होने पर उत्तर पश्चिम (NW) में भी किचन हो सकती है परंतु उस घर में अतिथि ज्यादा आते हैं व किचन में खाना बनता रहता है। उत्तर पश्चिम (NW) की किचन में West Wall पर चूल्हा रख सकते हैं।
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रसोई का फर्श अन्य फर्श से नीचा नहीं होना चाहिए । रसोई का फर्श बराबर ठीक रहता है।
6. अपार्टमेंट में पूजा घर कहां पर होना चाहिए (Where should be the Pooja Ghar (Room) in the apartment?) -
मंदिर शब्द का क्या अर्थ है इस शब्द की रचना कैसे हुई ? मंदिर शब्द में 'मन' और 'दर' की संधि है (मन + दर) मन अर्थात मन दर अर्थात द्वार मन का द्वार तात्पर्य यह कि जहाँ हम अपने मन का द्वार खोलते हैं, वह स्थान मंदिर है। मन म अर्थात मम में न अर्थात नहीं, जहाँ में नहीं !! अर्थात जिस स्थान पर जाकर हमारा 'मय' यानि अहंकार 'न' रहे वह स्थान मंदिर है। सर्व विदित है कि ईश्वर हमारे मन में ही है, अतः जहाँ में 'न' रह कर केवल ईश्वर हो वह स्थान मंदिर है।
अपार्टमेंट का एक ऐसा रूम जहां पर हम अपने इष्टदेव को स्थान देते है । पूजा घर में हम अपने आराध्य देव के सामने प्रार्थना करते है, जिससे हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। पूजा घर में हम अपने आराध्य देव के सामने अपनी मनोकामना रखते है और इनकी पूर्ति के लिए हम प्रार्थना भी करते हैं। पूजा घर पूरे अपार्टमेंट की सबसे पवित्र जगह होती है। यहां पर हम प्रातः एवं सायंकाल में पूजा-अर्चना करते है और साथ ही साथ अपने धर्म से संबंधित अनुष्ठान व धार्मिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं। तो अब इतना महत्वपूर्ण है पूजा घर तो कौन-कौन सी वास्तु की बातों का ध्यान रखना चाहिए -
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पूजा घर मुख्य रूप से ईशान (NE) में बनाएँ।
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बेडरूम में पूजा घर का निर्माण नहीं करें।
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तेल का दीपक भगवान के बांये (left) में तथा घी का दीपक भगवान के दाहिने (Right) में होना चाहिए।
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कोई भी मूर्ति खंडित पूजा घर में नहीं लगावें ।
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पूजा घर के दरवाजे दो भाग में हों, लोहे के दरवाजे का निर्माण नहीं। करें।
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अपने आप खुलने व बन्द होने वाले तथा स्प्रिंग का प्रयोग पूजा घर के दरवाजे में नहीं करें।
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पूजा स्थल के ईशान (NE) कोण को भारी न बनावें, उस स्थान पर चबूतरे का निर्माण नहीं करें, आसन या चटाई पर बैठकर पूजा करें।
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पूजा करने वालों का मुँह पूर्व या उत्तर में तथा देवी-देवताओं का पश्चिम या पूर्व में रखें ।
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पूजा घर में यज्ञ मण्डप (अग्नि कुंड) का निर्माण आग्नेय (SE) भाग में करें।
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पूजा घर के ऊपर या नीचे शौचालय नहीं हो।
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दीवार से सटाकर किसी भी देवी-देवता की मूर्ति या तस्वीर न लगावें, एक-दो इंच जगह अवश्य छोड़ दें।
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पूजा घर में हिंसक व अशुभ पशु-पक्षियों के चित्र, महाभारत के चित्र व वास्तु पुरुष के चित्र आदि न लगावें ।
7. अपार्टमेंट की बाथरूम और टॉयलेट-सेप्टिक कहां पर होनी चाहिए (Where should be the bathroom and toilet-Septic Tank of the apartment?) -
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बाथरुम के पास चेंजिंग रूम पश्चिम या दक्षिण भाग में बना सकते हैं ।
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ईशान (NE) कोण में शौचालय का निर्माण नहीं करें।
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स्नानघर का फर्श पूर्व एवं उत्तर में नीचा तथा पश्चिम व दक्षिण में ऊँचा हो ।
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स्नान करते समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।
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वायव्य कोण में धोने के कपड़े रखें।
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बाथरुम में वॉश बेसिन व शॉवर ( फव्वारा) की व्यवस्था ईशान (NE) या पूर्वी भाग में करें। या उत्तर (N) या पर्व (E) में करें
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बाथरूम में आईना (Mirror) पूर्व या उत्तर दिशा में लगावें, दक्षिण दिशा में न लगावें ।
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गीजर (गर्म पानी) की व्यवस्था आग्नेय (SE) कोण में करें।
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बाथरूम की दीवारों का रंग या टाइल्स सफेद, हल्का आसमानी, नीला रख सकते हैं, परन्तु लाल या काला ठीक नहीं है।
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अपार्टमेंट में टॉयलेट का निर्माण मध्य भाग, ईशान (NE), नैऋत्य (SW) में नहीं करें। दक्षिण एवं नैऋत्य के बीच शौचालय का निर्माण कर सकते हैं।
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भवन के पश्चिम में या पश्चिम वायव्य (WNW) में शौचालय का निर्माण करें।
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W/C उत्तर (N) या दक्षिण (S) Facing होना चाहिए।
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सेप्टिक टैंक का आउटलेट पश्चिम या दक्षिण दिशा में हो ।
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ईशान (NE) या नैऋत्य (SW) कोण व दक्षिण-पूर्व (SE) में सेप्टिक टैंक का निर्माण नहीं करें।
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सैप्टिक टैंक की चौड़ाई उत्तर-दक्षिण तथा लम्बाई पूर्व-पश्चिम में रखें ।
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सेप्टिक टैंक के तीन भाग करके पानी का स्थान पूर्वी भाग में तथा मल का स्थान पश्चिमी भाग में करें।
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सेप्टिक टैंक का निर्माण प्लिंथ लेवल से ऊँचा न करें, भूमि के लेबल में ठीक है ।
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सेप्टिक टैंक का निर्माण उत्तर वायव्य (NNW) में करें अर्थात उत्तर दिशा के 9 बराबर भाग करके, पहले के दो भाग छोड़कर करें।
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सेप्टिक टैंक के विषय में कहा गया है कि यह उत्तर में हो तो अर्थ हानि, ईशान (NE) में व्यापार धंधे में हानि, पूर्व में अपयश की प्राप्ति, दक्षिण में स्त्री वियोग, नैऋत्य (SW) में मृत्यु भय या पीड़ा व पश्चिम में मानसिक अशांति देता है ।
वास्तु विद् -रविद्र दाधीच (को-फाउंडर) वास्तुआर्ट